Monday, September 30, 2013

भारत एक रोचक इतिहास.......का साक्षी ..................



प्राचीन भारत की सीमाएं विश्व में दूर-दूर तक फैली हुई थीं। भारत ने राजनैतिक आक्रमण तो कहीं नहीं किए परंतु सांस्कृतिक दिग्विजय अभियान के लिए भारतीय मनीषी विश्वभर में गए। शायद इसीलिए भारतीय संस्कृति और सभ्यता के चिन्ह विश्व के लगभग सभी देशों में मिलते हैं।
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यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि सांस्कृतिक और राजनैतिक रूप से भारत का विस्तार ईरान से लेकर बर्मा तक रहा था। भारत ने संभवत विश्व में सबसे अधिक सांस्कृतिक और राजनैतिक आक्रमणों का सामना किया है। इन आक्रमणों के बावजूद भारतीय संस्कृति आज भी मौजूद है। लेकिन इन आक्रमणों के कारण भारत की सीमाएं सिकुड़ती गईं। सीमाओं के इस संकुचन का संक्षिप्त इतिहास यहां प्रस्तुत है।
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ईरान – ईरान में आर्य संस्कृति का उद्भव 2000 ई. पू. उस वक्त हुआ जब ब्लूचिस्तान के मार्ग से आर्य ईरान पहुंचे और अपनी सभ्यता व संस्कृति का प्रचार वहां किया। उन्हीं के नाम पर इस देश का नाम आर्याना पड़ा। 644 ई. में अरबों ने ईरान पर आक्रमण कर उसे जीत लिया।
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कम्बोडिया – प्रथम शताब्दी में कौंडिन्य नामक एक ब्राह्मण ने हिन्दचीन में हिन्दू राज्य की स्थापना की।
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वियतनाम – वियतनाम का पुराना नाम चम्पा था। दूसरी शताब्दी में स्थापित चम्पा भारतीय संस्कृति का प्रमुख केंद्र था। यहां के चम लोगों ने भारतीय धर्म, भाषा, सभ्यता ग्रहण की थी। 1825 में चम्पा के महान हिन्दू राज्य का अन्त हुआ।
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मलेशिया – प्रथम शताब्दी में साहसी भारतीयों ने मलेशिया पहुंचकर वहां के निवासियों को भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से परिचित करवाया। कालान्तर में मलेशिया में शैव, वैष्णव तथा बौद्ध धर्म का प्रचलन हो गया। 1948 में अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो यह सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य बना।
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इण्डोनेशिया – इण्डोनिशिया किसी समय में भारत का एक सम्पन्न राज्य था। आज इण्डोनेशिया में बाली द्वीप को छोड़कर शेष सभी द्वीपों पर मुसलमान बहुसंख्यक हैं। फिर भी हिन्दू देवी-देवताओं से यहां का जनमानस आज भी परंपराओं के माधयम से जुड़ा है।
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फिलीपींस – फिलीपींस में किसी समय भारतीय संस्कृति का पूर्ण प्रभाव था पर 15वीं शताब्दी में मुसलमानों ने आक्रमण कर वहां आधिपत्य जमा लिया। आज भी फिलीपींस में कुछ हिन्दू रीति-रिवाज प्रचलित हैं।
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अफगानिस्तान – अफगानिस्तान 350 इ.पू. तक भारत का एक अंग था। सातवीं शताब्दी में इस्लाम के आगमन के बाद अफगानिस्तान धीरे-धीरे राजनीतिक और बाद में सांस्कृतिक रूप से भारत से अलग हो गया।
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नेपाल – विश्व का एक मात्र हिन्दू राज्य है, जिसका एकीकरण गोरखा राजा ने 1769 ई. में किया था। पूर्व में यह प्राय: भारतीय राज्यों का ही अंग रहा।
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भूटान – प्राचीन काल में भूटान भद्र देश के नाम से जाना जाता था। 8 अगस्त 1949 में भारत-भूटान संधि हुई जिससे स्वतंत्र प्रभुता सम्पन्न भूटान की पहचान बनी।
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तिब्बत – तिब्बत का उल्लेख हमारे ग्रन्थों में त्रिविष्टप के नाम से आता है। यहां बौद्ध धर्म का प्रचार चौथी शताब्दी में शुरू हुआ। तिब्बत प्राचीन भारत के सांस्कृतिक प्रभाव क्षेत्र में था। भारतीय शासकों की अदूरदर्शिता के कारण चीन ने 1957 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया।
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श्रीलंका – श्रीलंका का प्राचीन नाम ताम्रपर्णी था। श्रीलंका भारत का प्रमुख अंग था। 1505 में पुर्तगाली, 1606 में डच और 1795 में अंग्रेजों ने लंका पर अधिकार किया। 1935 ई. में अंग्रेजों ने लंका को भारत से अलग कर दिया।
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म्यांमार (बर्मा) – अराकान की अनुश्रुतियों के अनुसार यहां का प्रथम राजा वाराणसी का एक राजकुमार था। 1852 में अंग्रेजों का बर्मा पर अधिकार हो गया। 1937 में भारत से इसे अलग कर दिया गया।
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पाकिस्तान - 15 अगस्त, 1947 के पहले पाकिस्तान भारत का एक अंग था।
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बांग्लादेश – बांग्लादेश भी 15 अगस्त 1947 के पहले भारत का अंग था। देश विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान के रूप में यह भारत से अलग हो गया। 1971 में यह पाकिस्तान से भी अलग हो गया।

Sunday, September 22, 2013

डेंगू के अचूक ब्रहमास्त्र............



डेंगू का उपचार: आजकल डेंगू एक बड़ी समस्या के तौर पर उभरा है, पुरे भारत में ये बड़ी तेजी से बढ़ता ही जा रहा है जिससे कई लोगों की जान जा रही है l
यह एक ऐसा वायरल रोग है जिसका माडर्न मेडिकल चिकित्सा पद्धति में कोई इलाज नहीं है परन्तु आयुर्वेद में इसका इलाज है और वो इतना सरल और सस्ता है कि उसे कोई भी कर सकता है l
तीव्र ज्वर, सर में तेज़ दर्द, आँखों के पीछे दर्द होना, उल्टियाँ लगना, त्वचा का सुखना तथा खून के प्लेटलेट की मात्रा का तेज़ी से कम होना डेंगू के कुछ लक्षण हैं जिनका यदि समय रहते इलाज न किया जाए तो रोगी की मृत्यु भी सकती है l


यदि आपके आस-पास किसी को यह रोग हुआ हो और खून में प्लेटलेट की संख्या कम होती जा रही हो तो चित्र में दिखाई गयी चार चीज़ें रोगी को दें :
१) अनार जूस
२) गेहूं घास रस
३) पपीते के पत्तों का रस
४) गिलोय/अमृता/अमरबेल सत्व
अनार जूस तथा गेहूं घास रस नया खून बनाने तथा रोगी की रोग से लड़ने की शक्ति प्रदान करने के लिए है, अनार जूस आसानी से उपलब्ध है यदि गेहूं घास रस ना मिले तो रोगी को सेब का रस भी दिया जा सकता है l
- पपीते के पत्तों का रस सबसे महत्वपूर्ण है, पपीते का पेड़ आसानी से मिल जाता है उसकी ताज़ी पत्तियों का रस निकाल कर मरीज़ को दिन में २ से ३ बार दें , एक दिन की खुराक के बाद ही प्लेटलेट की संख्या बढ़ने लगेगी l
- गिलोय की बेल का सत्व मरीज़ को दिन में २-३ बार दें, इससे खून में प्लेटलेट की संख्या बढती है, रोग से लड़ने की शक्ति बढती है तथा कई रोगों का नाश होता है l यदि गिलोय की बेल आपको ना मिले तो किसी भी नजदीकी पतंजली चिकित्सालय में जाकर "गिलोय घनवटी" ले आयें जिसकी एक एक गोली रोगी को दिन में 3 बार दें l

यदि बुखार १ दिन से ज्यादा रहे तो खून की जांच अवश्य करवा लें l
यदि रोगी बार बार उलटी करे तो सेब के रस में थोडा नीम्बू मिला कर रोगी को दें, उल्टियाँ बंद हो जाएंगी l
ये रोगी को अंग्रेजी दवाइयां दी जा रही है तब भी यह चीज़ें रोगी को बिना किसी डर के दी जा सकती हैं l
डेंगू जितना जल्दी पकड़ में आये उतना जल्दी उपचार


Thursday, September 5, 2013

धर्म गुरुओं का अधर्म की ओर पग


आजकल हर न्यूज़ चैनल में हमारे देश के आध्यात्मिक गुरु आशाराम जी के कारनामों की चर्चा है.असल में आसाराम जैसे किसी आध्यात्मिक गुरु पर संगीन आरोप लगे है. वैसे यह कोई नया समाचार नहीं है इस तरह के कई आरोप कुछ प्रसिद्ध आध्यात्मिक धर्म गुरुओं पर लग चुके है जिनमे स्वामी नित्यानंद राधे माँ,निर्मल बाबा साध्वी प्रज्ञा जैसे गुरु इस में शुमार है.वैसे अभी तक आशाराम पर लगा नाबालिग से यौन शोषण आरोप ज्यादा गंभीर और शर्मनाक है. आशाराम अनेक बार अपने आश्रम में होने वाली अमानवीय घटनाओं के बाद भी कानून के शिकंजे से बच जाते थे. आपको याद होगा इससे पहले आशाराम के आश्रम में दो बच्चों की संदिग्ध हालत में मौत हुए थी तब भी आशाराम ने अपने राजनीतिक रसूख का उपयोग कर के कानून को ठेंगा दिखाया था.इसके अलावा अनेक बार गैरकानूनी ढंग से जमीन हडप कर आश्रम के निर्माण के तो पता नहीं कितने केस उन पर चल रहे है.अभी १५ सितम्बर तक उन्हें यौन शोषण के आरोप में जेल हवा खानी है और इस बार उनकी जेल यात्रा जल्द समाप्त होती नहीं दिख रही . अब शायद उनके पुराने कारनामों का चिटठा उन्हें इस बार कई महीनों के लिए कानून के गिरफ्त में रखे. वैसे जिसका बिता हुआ वक़्त ही धोखे और अपराधों की लम्बी श्रंखला हो. वो कितनी भी कोशिश कर ले अपने उस गुण को नहीं छोड़ नहीं पता.ये ही आशाराम के साथ भी है. उनने अपने जीवन के शुरुआती दिनों में भी धोखाधड़ी के नए आयामों को ही अपना संगी बनाया बाद में अचानक धर्म गुरु के तौर पर प्रकट हुए.अगर इस बार भी आशाराम जी को जल्दी कानूनी शिकंजे से छुटकारा मिल गया तो सारे देश वासियों का कानून के और न्यायालय के ऊपर से विश्वास ख़त्म हो जायेगा. हम सब की यही अपेक्षा है कि इन भ्रष्ट और बदनाम धार्मिक और आध्यात्मिक गुरुओं, नेताओं पर हमारी सरकार को सख्त कानून की धाराओं के तहत करवाई करना चाहिए जो उनकी निष्पक्ष निर्णयों और उसके कार्यान्वयन को प्रदर्शित करे................ .

Wednesday, September 4, 2013

नक्सलवाद से लोहा लेने तत्पर महिला कमांडो..............


केंद्र सरकार देश में महिला नक्सलियों की बढ़ती गतिविधियों से निपटने के लिए बड़ी संख्या में महिला कमांडो को तैनात करने जा रही है। केंद्र की इस नई पहल से महिला नक्सली और महिला कमांडो आमने-सामने होंगी।

आधिकारिक जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में महिला कमांडो तैनात करने का निर्णय लिया है। आधुनिक हथियारों से लैस महिला कमांडो बारिश के मौसम के बाद नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात की जाएंगी।

गौरतलब है कि गत 25 मई को बस्तर जिले की झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हुए नक्सली हमले में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और प्रतिपक्ष के नेता महेंद्र कर्मा सहित 31 कांग्रेसी कार्यकर्ता, पुलिस जवान व आम नागरिक शहीद हो गए थे। जांच में पता चला कि हमलावरों में कम उम्र की नक्सली युवतियां बड़ी संख्या में शामिल थीं। वे आधुनिक हथियारों और संचार साधनों से लैस थीं। समझा जाता है कि इस रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार इन इलाकों में महिला कमांडो की तैनाती करने जा रही है।

भगवान के लिए खेल से खिलवाड़......................


आजकल सभी ओर क्रिकेट के भगवान के २००वे टेस्ट मैच खेलने की चर्चा है. जिसे बीसीसीआई भी बड़े आयोजन के तोर पर ले रही हैं.इसलिए उनके प्रमुखों ने वेस्ट इंडीज का दौरा तक बनवा दिया और साउथ अफ्रीका के पहले से तयशुदा सीरीज को कचरे के डब्बे में डाल दिया. और अपनी पुरानी लड़ाई का बदला भी ले लिया..आप सोचेंगे कि क्रिकेट में हमारा तो साउथ अफ्रीका से तो कोई झगड़ा नहीं है, तो फिर किस लड़ाई का बदला लिया यह लड़ाई है बीसीसीआई चीफ ऍन श्रीनिवासन और साउथ अफ्रीका बोर्ड के प्रमुख अरुण लोगार्ट के बीच वो भी तब की जब लोगार्ट आईसीसी में प्रमुख पद पर थे. तब उनके कुछ फैसलों के कारण यह विवाद शुरू हुआ जिसका खामियाज़ा अब साउथ अफ़्रीकी बोर्ड को भोगना होगा.और एक बड़ा कारण है बीसीसीआई चाहती है कि सचिन तेंदुलकर अपना २००वे टेस्ट मैच के साथ अगर टेस्ट मैच को भी अलविदा कहना चाहते है, तो उनकी शानदार विदाई उन्हें उनके होम ग्राउंड वानखेड़े में दी जाये.वो भी पहले के सभी कायक्रमों को बदल कर, आपको नहीं लगता कि बीसीसीआई को अपने निर्णय पर दोबारा विचार करना चाहिए. क्या आप इसे बीसीसीआई का तानाशाही पूर्ण रवैया नहीं कहेंगे? एक खिलाडी के लिए मैदान का महत्व होना चाहिए या खेल का ज्यादा महत्व होना चाहिए .........मेरे विचार से यह बर्ताव बेहद शर्मनाक है............ .

सुरंजनी पर आपकी राय