Thursday, December 5, 2013

क्या हमारे पास विरासत के लिए ज़रा सी जगह भी नहीं है?


 हमारे देश की परम्परा है कि हम सदैव अपनी धरोहर को संजोकर रखने की कोशिश करते हैं. यही कारण है कि आज पूरे विश्व में हम अपनी प्राचीन धरोहरों की वजह से लोकप्रिय है.एक ओर तो हम देश के विकास को चहुँओर हुई उन्नति से जोड़ते है और देश को २१वीं सदी का शक्तिशाली देश बनाने की ओर अग्रसर है, वही दूसरी ओर देश की रक्षा में हमेशा अग्रणी रहे संसाधनों को वक़्त की गर्त में ढकेलने का विचार कर रहे है. मैं बात कर रही हूँ अपने समय के एक मात्र युद्धपोत आईएनएस विक्रांत की जो आज एक बीती हुई कहानी बनने जा रहा है. ३६ वर्षों की अद्वितीय सेवा प्रदान कर ३१ जनवरी १९९७ को सेवामुक्त(डीकमीशंड) इस युद्धपोत विक्रांत को स्थायी युद्धपोत संग्रहालय में तब्दील किए जाने की अनथक कोशिशे सरकारी लापरवाही के कारण परवान नहीं चढ सकी हैं और  15 वर्षों की नाकामयाब कोशिशों के बाद यह फैसला लिया गया है कि भारतीय नौसेना के देश के इस प्रथम विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को नीलाम कर दिया जाए.फिलहाल इसके लिए १४ दिसम्बर की तारीख तय की गयी है. सबसे दुखद पहलू यह है कि नौसेना दिवस से ठीक एक दिन पहले ही आईएनएस विक्रांत की नीलामी की घोषणा की गई।

            आईएनएस विक्रांत भारत का पहला विमानवाहक पोत (एयरक्राफ्ट कैरियर) था. जिसका आदर्श वाक्य -"जयेम सम युधि स्प्रदाह" ऋग्वेद से लिया गया था इसका अर्थ है कि मैं उन्हें परास्त करने की क्षमता रखता हूँ जो मुझसे लड़ाई करना चाहे. इस जहाज को 1957 में ग्रेट ब्रिटेन से ख़रीदा गया था.जो 4 मार्च 1961 को यूनाइटेड किंगडम में भारतीय उच्चायुक्त विजयलक्ष्मी पंडित द्वारा नौसेना में शामिल(कमीशंड) किया गया था. विक्रांत का अर्थ है " साहसी"और अपने नाम के अनुरूप यह जहाज २६२ मीटर लम्बा और ६० मीटर चौड़ा है. ४० हज़ार मीट्रिक टन भार वाले इस जहाज पर मिग २९ के, तेजस मार्क २, वेस्टलैंड सी किंग हेलिकॉप्टर अठखेलियाँ भरते थे. आईएनएस विक्रांत ने १९७१ में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए चलाये अभियान में अपना भरपूर जलवा दिखाया. विक्रांत ने १९७१ के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 

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