Saturday, August 30, 2014

साईं पर सियासत या साजिश

                                                                                                                                                                                                                                             
हमारा देश धर्म निरपेक्ष राज्य है.जहाँ सभी नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने की स्वतंत्रता है.जहाँ हम सभी देश वासी सभी त्यौहार मिलजुलकर मनाते है. हमारी संस्कृति अनेकता में एकता के सूत्र में बंधी है.जो सारे विश्व में हमारी पहचान है.आज हम विश्व की एक ऐसी महाशक्ति है,जो सभी क्षेत्रों में अग्रणी है.
            एक ओर हम एक महाशक्ति के तौर पर उभर रहे है,दूसरी ओर हमारी सोच पर ना जाने क्यों ग्रहण लगता जा रहा है,हम अपनी सभ्यता और संस्कृति के मायने बदल रहे है, हम अपने स्वार्थ को हर चीज से ऊपर रख रहे है चाहे वो हमारे लिए घातक परिणाम क्यों ना दिखाए,  हम अपने धर्म को स्वार्थपरकता के साथ जोड़ते है.धर्म हमारी आवश्यकता की पूर्ति का माध्यम बनता जा रहा है.एक ओर धर्म गुरुओं को  भगवान का दर्जा देते है उन की कही बात को भगवान का सन्देश मानते है.उनको वो सम्मान देते है. जो हमारे लिए मार्गदर्शक या आदर्श है.हमें उनका अनुसरण करना है.यह कहें कि हम उनका अनुसरण आँख मूंद कर करते है,क्या यह अन्धविश्वास नहीं?शायद हाँ क्योंकि हमें हमेशा यही सिखाया है गुरु का स्थान ईश्वर से ऊपर है.इसी विश्वास ने हमें उनके कार्यों को सही मानने को मजबूर किया. आज कल हम सभी  हिन्दू धर्म गुरुओं के नये मन्त्र पर हो रही बहस को सुन रहे है,जिसके अनुसार जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द ने एक विचार व्यक्त कर साईं बाबा की पूजा को गलत घोषित किया,जिसके बाद एक विवाद शुरू हो गया, दिन बीतने के साथ स्वरूप में विस्तार होता चला गया.कुछ दिन पहले सभी  मंदिरों से साईं की मूर्ति हटाने का फरमान सुनाया गया वो भी धर्म संसद में जहाँ सारे धर्मगुरुओं ने शिरकत की.जो हमारे लिए आदर्श है.उन के द्वारा साईं भक्तों के साथ किया बर्ताव क्या हमें कुछ सोचने पर मजबूर नहीं करता,क्या यह हम सभी को बाटने की कोशिश का प्रयास तो नहि या अपनी श्रेष्ठता का डंका बजाकर धर्म का बटवारा करने की साजिश है. एक ओर जहाँ साईं ने “सबका  मालिक एक है” का सन्देश दिया.वही हमारे  धर्म गुरु हमारे बीच कई तरह की खाइयाँ खोदने में जुट गए है.आज वे जाति,बोली,भाषा,को आधार बनाकर हमें एक अनोखा ज्ञान देकर धर्म की नयी इबारत लिखने को आतुर है.शंकराचार्य ने तो यहाँ तक कह डाला कि जिसका ना जन्म का पता ना  कोई और सबूत जो उसकी सही पहचान हो,ऐसे किसी को भी भगवान का दर्ज़ा देना कहाँ तक सही है.इसके साथ साईं की मूर्ति को सनातन धर्म मंदिरों में स्थापित करने को अनुचित ठहराया.उनके अनुसार शिर्डी के साथ देश के सभी हिस्सों से साईं की पूजा को समाप्त  करना  होगा.मेरे विचार से साईं ने कभी भी स्वयं को भगवन नहीं कहलवाया, वे तो सदैव गरीबों,लाचारों,और अशक्तों का सहारा बने. उन्होंने सभी को भाईचारे और अपनेपन का सन्देश दिया,इन्होने भिक्षा मांग कर भूखे को भोजन कराया ऐसे साईं को भगवान का दर्ज़ा देने में धर्मगुरुओं को क्यों मुश्किल हो रही है.क्या यह वाकई एक निस्वार्थ भाव से सनातन धर्म की रक्षा के लिए उठाया कदम है.या अपने मुखोटे और असलियत के बीच की सच्चाई,क्योंकि हर तरफ  राजनीति का दूषित  और स्वार्थी स्वरुप व्याप्त है. कहीं धर्म गुरुओं की यह विचारधारा राजनीति से प्रेरित तो नहीं, कहा नहीं जा सकता, आज अगर साईं को पूरा देश एक भाव से अपना इष्ट मानता है.तो क्यों नहीं हमारे धर्म गुरु भी मंदिरों में स्थापित सभी  भगवानों की मूर्तियों की तरह साईं की पूजा करने का भी समर्थन करते.    ईश्वर अल्लाह तेरे नाम सबको सन्मति दे भगवान....................       

Thursday, August 14, 2014

पर्वों को निभाएं भर नहीं अपनाएं भी................

हम अपने समाज को आधुनिकता  और पश्चिमी  सभ्यता में  रंगा हुआ देखकर गर्व  का अनुभव करते है. पर क्या वाकई यह गर्व का विषय है? शायद नहीं, हम जिस आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति की अंधी दौड़  का हिस्सा बन गए है. हमने कभी सोचा है इस ने हमे कहाँ लाकर खड़ा कर दिया है. यह सोचने की न ही  हमने कोई कोशिश की, न ही कभी जरुरत महसूस हुई. अगर अब भी हम इस ओर ध्यान नहीं देते, तो इस देश और समाज का क्या हश्र होगा कोई नहीं जाता. अभी कुछ दिन पूर्व हम ने राखी का त्यौहार मनाया. यह त्यौहार हम प्राचीन काल से मनाते चले आ रहे है. हम सभी जानते है, कि यह त्यौहार भाई बहन के असीम प्यार और विश्वास का प्रतीक है.पर आज के समय में इस त्यौहार का महत्व और भी ज़्यादा बढ़ गया है,जहाँ हमारे समाज में रिश्तों का स्तर लगातार गिर रहा है,ऐसे में किसी भी रिश्ते को निभाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.
आज कोई भी रिश्ता विश्वास और अपनेपन से कोसों दूर है. हम केवल  त्योहारों को महज खाना पूर्ति के तौर पर मनाते है.वास्तविकता तो यह है कि कोई भी त्यौहार पूरा परिवार एक साथ नहीं मनाता, सभी की अपनी व्यस्तताएँ है. एक ओर हम सभी रिश्ते निभाने का दावा करते है, वहीँ दूसरी ओर हमे  उन्हें निभाने के लिए मदर्स डे,फादर्स डे, ग्रैंड पेरेंट्स डे, डाटर्स डे का सहारा लेना पड़ रहा है, हम रक्षा बंधन पर  अपने भाई की कलाई पर राखी बांधते है.भाई हमें  उपहार के साथ हमारी सारी उम्र रक्षा करने का प्रण लेता है,क्यों नहीं हम भाई से एक और प्रण लेने को कहें कि  वह देश की अन्य बहनों की भी विपत्ति में रक्षा करेगा,उनके साथ न तो कभी दुर्व्यवहार करेगा और न ही किसी को करने देगा. हमारे  समाज  में माता-पिता,भाई-बहन,पति-पत्नी,मित्र जैसे तमाम रिश्तों में मनमुटाव और वैमनस्यता बढ़ रही है.आज समाज में गुरु और शिष्य जैसे पवित्रतम रिश्ते की पवित्रदेह के घेरे में है.इस माहौल में  हम अपने आप को चारों ओर डर और दहशत से घिरा पा रहे है, हम अपनी बेटियों को न घर में,न स्कूल, न किसी अन्य जगह सुरक्षित पाते हैं. आज उनके लिए घर तक में अपनी अस्मिता को बचा पाना एक बड़ा सवाल बन गया है. कुछ साल पहले की एक घटना मुझे याद आ गयी इसे मैं यहाँ व्यक्त करना चाहूंगी,,घटना दिल्ली से जुडी है.आपको याद होगा आरुषी हत्याकांड जिसने रिश्तों के मायने ही बदल दिए,  कारन कोई हो पर क्या एक मां बाप क्या अपनी इकलौति बेटी को मौत के घाट उतार सकते है.वो भी इस तरह,इसी तरह स्कूल में बच्चों के साथ हो रहे दुष्कर्म  से जुड़ी एक घटना बंगलुरु के स्कूल में घटी जिसने गुरु शिष्य के बीच के सम्मान और आदर को धूमिल कर दिया.
क्यों  इस ओर  हम सभी का ध्यान नहीं जाता या हम इस ओर  अपना ध्यान ले जाना नहीं चाहते,पर अब वक़्त आ गया है  कि हम सभी इस ओर ध्यान दें  और अपनी बेटियों को सुरक्षित महसूस कराने में हाथ बटायें. तभी रक्षाबंधन और पाश्चात्य दिवसों को मनाना सार्थक होगा.....................

Wednesday, August 13, 2014

खिलाड़ियों से खिलवाड़ ................

पिछले कुछ दिनों से हम सभी पुरस्कारों को लेकर हो रही घोषणाओं के बारे में देख-सुन रहे है.मेरा इशारा अर्जुन पुरस्कारों की ओर है.जहाँ एक बार फिर योग्यता के मापदंडों को दरकिनार करते हुए मनमाने तरीके से नामों का चयन हुआ है.सबसे महत्वपूर्ण राजीव गाँधी खेल रत्न के लिए तो इस बार किसी भी खिलाडी का चयन ही नहीं हुआ.क्या सभी खेलों में कोई भी इस पुरस्कार का हकदार होने की कसौटी पर खरा नही उतरा,या यहाँ भी चयनकर्ताओं ने उपलब्धियों की ओर ध्यान देने से ज़्यादा अपनी बात को सही साबित करने की कोशिश की.एक ही राज्य को ज़्यादा तवज़्ज़ो देना किस मापदंड के तहत सही माना जा सकता है ....जब हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों को सम्मान देने की बात करते है.तो फिर देश में खेल के क्षेत्र में सबसे बड़े सम्मान में खिलाड़ियों के साथ पक्षपातपूर्ण रवैया हम सभी को और देश को शर्मसार करने वाली बात नहीं है क्या ? शायद हमारी सरकार को भी इस ओर ध्यान देने की जरूरत है ताकि देश की शान में चार चाँद लगाने वालों को भी हम उनके अनुसार सम्मान दे सके.........

सुरंजनी पर आपकी राय