गुरुवार, 11 सितंबर 2025

मन बंजारा


मन बंजारा दिलचस्प एक काव्य संग्रह है जिसे मेरी मित्र और जानी मानी कवियत्री और लेखिका निरुपमा खरे ने सृजित किया है। हमारे रोजमर्रा के जीवन के ताने बाने से जोड़कर इस कविताओं की श्रृंखला में प्रेमगीत, दहलीज मायके की, सतरंगी सा जीवन, मैं और मेरा अक्स, आंखों का दरिया, बर्फ और रिश्ते ऐसे अनेक शीर्षकों वाली कविताएं इस संग्रह में शामिल हैं।

निरुपमा जी को मैं पिछले कुछ सालों से जानती हूं। उनके बारे में क्या कहूं, जब भी मिलती हूं उनकी रचनाशीलता और स्वभाव के एक अलग ही पहलू का अनुभव होता है। उनके व्यक्तित्व के इतने पहलू है कि आप हमेशा उनसे मिलकर एक नई निरुपमा से मिलते हैं।

अब बात उनके काव्य संग्रह मन बंजारा की..तो वाकई उन्होंने जो शीर्षक दिया है वह न केवल तर्कसंगत है बल्कि पूरी तरह से उपयुक्त भी है। कहां से शुरू करें क्योंकि हर कविता हमें जीवन की सच्चाइयों से रूबरू कराते हुए साहित्यिक गुणवत्ता से सहजता से जोड़ देती है। 

निर्मल आनंद के बीच ही हम सारे जीवन के तमाम अनुभवों को महसूस कर लेते है और इश्क की बाजियों से लेकर बेला चमेली की खुशबू तक महसूस कर सकते हैं। 'अंतहीन तलाश' कविता में हमारे आज के जीवन के अथक प्रयास के साथ लड़खड़ाते कदमों के बीच कुछ पाने की चाहत दिखाई देती है तो 'कांच के ख्वाब' में अपेक्षाओं का संघर्ष नज़र आता है। 

'आईना' में खुद को ढूंढने के साथ भूत भविष्य के बीच का द्वंद्व है जबकि 'मन पाखी' ने मन की इच्छाओं को परिंदे से जोड़कर मन की व्यथा सुना दी है।  'खत' शीर्षक कविता आज के कंप्यूटरीकृत जीवन में उन सुनहरी स्मृतियों को सामने ले आती है जब हम अपने दुख सुख, प्यार एवं अहसास को इनके माध्यम से अभिव्यक्त करते थे। 

कुल मिलाकर मन बंजारा काव्य संग्रह जीवन के तमाम पहलुओं,रंगों,विविधताओं और विशिष्टताओं को समेटे हुए इंद्रधनुष की खूबसूरती के साथ सृजनशीलता के समंदर से मोती तलाशने का काम करता है। वाकई पठनीय और सराहनीय सृजन के लिए निरुपमा जी को बधाई।

शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

यारों की यारियां के साथ भावनाओं के तार से बुनी है ‘थैंक यू यारा’

थैंक यू यारा पर मेरी प्रतिक्रिया 

‘थैंक यू यारा’ कहानियों का एक ऐसा पिटारा है जो आस पास के परिदृश्य को भावनात्मक तौर पर व्यक्त करता है…जैसे आप अपनी ही कहानी पढ़ रहे हों। थैंक यू यारा वास्तव में अनकहे भावों की अभिव्यक्ति है। इस पुस्तक की लेखिका और आकाशवाणी भोपाल की लोकप्रिय एनाउंसर अमिता त्रिवेदी स्वयं एक भावुक और संवेदनशील व्यक्तित्व की धनी है इसलिए उनकी लेखनी में जीवन के हर रंग का एक अलग इंद्रधनुषी स्वरूप देखने को मिलता है।


कहानी “सुर्ख गुलाब” के माध्यम से वे एक संस्कारी विषय को रोचक अंदाज में समझाती हैं। जहां दो बहनों के बीच गुलाब के गुलदस्ते का घर में आना और परिवार के बीच उनकी वार्ता को बड़े ही रोचकता के साथ पेश किया, वहीं प्रभा दीदी का एक ऐसा व्यक्तित्व है जो उन दो बहनों के हर क्षण की साक्षी हैं। “गोल्डन कर्ल” भी ऐसी ही एक और रोचक कहानी है जिसमें चार सहेलियों के साथ में व्यतीत होते जीवन के अनुभव अभिव्यक्त हैं। इसमें शिक्षण विद्यार्थी संबंध के साथ साथ बच्चो की मनःस्थिति का चित्रण भी है।


“परिक्रमा“ में विशु और जया दोनों का चूड़ियों के प्रति मोह तो विशेष है ही, गुना शहर के साथ जुड़े पल, वहां की गलियों की दास्तां एवं उनकी तुलना पुराने भोपाल और न्यू मार्केट से.. हमें इससे जोड़ देती है। परिक्रमा में रिश्तों की परिक्रमा है मसलन पुरानी और नई पीढ़ी के संबंध, व्यवसायिक समझ, कलाकार और जानकार के संबंध, कला के पारखी और कलाकार की मनःस्थिति की अविरल धारा हमें बहने पर मजबूर कर देती है।


एक और हृदयस्पर्शी  कहानी “स्नेह बंध” है जो आज के समय में राखी जैसे पर्व की कटु सच्चाई को अपने में समाहित किए हैं। लिली एक हंसमुख व्यक्तित्व है,जो राखी से जुड़ी अपने बचपन की स्मृतियों को आज भी वैसे ही सहेजे है। वो दादा और भाई को हर साल राखी बांधती हैं, दादा मतलब उसके बड़े भाई और भाई मतलब चाचा का बेटा जो उसी के बराबर था, राखी पर चाचा और पापा के अलावा घचा (घनश्याम चाचा) सहित सभी को बुआ द्वारा भेजी राखी का इंतजार होता था, जैसे बुआ सशरीर आ गई।


 लेकिन दादा सहित एक एक कर परिजनों के जाने से राखी बेमानी और सूनी  हो गई और बच्चों के बड़े होते ही अब कुछ बदल गया । अब न तो पहले जैसा सावन रहा और न ही सावन में घर जाने का उत्साह। इसी कहानी में हम दोस्ती के रिश्ते के नए रूप से भी रूबरू होते हैं जब लिली अपनी मित्र चित्रा को राखी बांधने का कह कर स्नेह बंध की नई परिभाषा गढ़ती है।


“मावठा” एक ऐसे विषय पर चोट करती  है जो आज के समाज में ज्वलंत मुद्दा है। शादी ब्याह में उपहार या शगुन के नाम पर जो दिया जाता है,उस पर रोक लगाने के प्रयास में सुनयना, परिवार में अजीब माहौल और वैचारिक द्वंद ।

वैसे इस कहानी की जान वह पंक्ति है जो एक लाइन में पूरी बात को स्पष्ट कर देती है कि “”लेनदेन व्यापार में सुहाता है या व्यावसायिक संबंधों में। जीवन के रिश्ते इतने सस्ते नही हैं कि दौलत की तराजू पर तौले जाएं।”


“प्रार्थना और यूं भी होता है “जैसी कहानियां भी हमें झकझोर देती  हैं क्योंकि उनमें व्यक्त विषय हमारे समाज की एक अलग तस्वीर पेश करते है। थैंक यू यारा एकअनकही परंतु हमारे ही बीच की बातों का सार है। ये किताब आपको जरूर पढ़नी चाहिए क्योंकि इसके माध्यम से आप समाज की हकीकत से दो चार होते हैं। । 


किताब की लेखिका अमिता त्रिवेदी का इस किताब को लिखने का जो भी मंतव्य रहा हो पर वे अपने उद्देश्य में पूर्णतः सफल हुई है। उनके द्वारा अलग अलग भावनाओं और रिश्तों की अनछुई संवेदनाओं को बहुत ही कुशल कारीगर की तरह इस किताब थैंक यू यारा में उकेरा  गया है।

सोमवार, 14 जुलाई 2025

ब्लॉकबस्टर फिल्म की तरह है ‘भोपाल टॉकीज’

क्यूँ भाई मियां, भोपाल टॉकीज चल रिये को क्या… ये बात भोपाल वासियों के लिए कोई नई नहीं है। तो चलिए ऑटो में बैठकर भोपाल टॉकीज चलते हैं। आप सोच रहे होंगे कि क्या वाकई में आज भी भोपाल टॉकीज उतनी ही शानोशौकत से खड़ी है, जैसे पहले थी? शायद नहीं, पर फिर भी मैं आपको भोपाल टॉकीज ले जाए बिना नहीं मानूंगी।

आप सोच रहे होंगे कि भोपाल टॉकीज में ऐसा क्या है तो मैं स्पष्ट कर दूं कि मेरा आशय पुराने भोपाल में स्थित थिएटर से नहीं बल्कि हमारे अज़ीज़ संजीव (परसाई) भैया के सपनों की किताब भोपाल टाकीज से है. जिसमें हमें एक फिल्म की भान्ति प्यार, तकरार, इंकार ,इजहार, दोस्ती और चटपटी कहानियों  के साथ साथ एक अलग ही मसालेदार थ्रिलर का अनुभव मिलता है. यह किताब एक सफल और ब्लॉकबस्टर फिल्म की तरह कई पहलुओं को भी छूने की कोशिश है.

जहां एक ओर ये किताब आपको भोपाल की नवाबी विरासत से रूबरू कराती है.वही दूसरी ओर ये हमें भोपाली लहजे के साथ भोपाल के इतिहास के रोचक पहलुओं को भी सामने लाती है. ये किताब रानी कमलापति जैसी बेगमों और बेगम सुल्तान शाहजहाँ के रुतबे को जानने का माध्यम भी है. भोपाल की  पहचान हमी

सुरंजनी पर आपकी राय