Saturday, August 27, 2011

केवल कमाई नहीं सामाजिक सरोकारों की भी चिंता करे मीडिया

आज हमारे पत्रकारों ने मीडिया की तस्वीर बदल दी है.आज एक टीवी एंकर धारावाहिक के मुकाबले ज्यादा धयान आकर्षित कर रहा  है. ब्रेकिंग न्यूज़ का अर्थ बदल कर किसी की इज्ज़त उतर देना रह गया है.आज मीडिया की जिम्मेदारी भी सवालों के घेरे में है.मीडिया केवल वही समाचारों को प्रदर्शित करता है जो उसे टीआरपी रेटिंग में टॉप पर पहुंचा दे जबकि असलियत में मीडिया को केवल उन्ही समाचारों को प्रकाशित-प्रसारित करना चाहिए जो सभी के लिए उपयोगी और तर्कसंगत हो.हमें इस ओर भी धयान देना चाहिए कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अपनी जिम्मेदारी 'जवाबदेही' के साथ  निभाए लेकिन आज हमारे पास भी  इतना वक्त ही नहीं कि हम अपनी इस जिम्मेदारी को पूरा कर सके.मीडिया ने इस संसार  को एक छोटा द्वीप बना दिया है इसका यह अर्थ है कि मीडिया जानकारी देने में सफल तो है पर शायद इसमें  कुछ क्षेत्रों की  जानकारी का अभाव है जो बाकी से ज्यादा महत्वपूर्ण है जैसे गांव में अभी भी आधारभूत सुविधाएँ नहीं है इन जानकारियों को क्यों हम महत्त्व नहीं देते.मीडिया किसी क्रिकेटर की  शादी को मुख्य समाचारों में जगह देगा लेकिन किसी किसान या बुनकर से जुड़े समाचार को वो तवज्जो नहीं  मिलेगी. अगर किसी नेता के चुनाव के प्रचार से जुडी खबर होगी तो उसके लिए मीडियाकर्मी सारे काम को दरकिनार करके उनके क्षेत्र का पूरा लेखा जोखा लेकर  उसपर एक कार्यक्रम तैयार करके विशेष के तौर पर पेश करते है                                                                                                                          .                                                                          हम सभी को मीडिया के नए स्वरुप पर आश्चर्य तो अवश्य होता  है पर देश के नागरिक होने के नाते मीडिया द्वारा दी जा रही ख़बरों के प्रति अपने विचारों से  सभी को अवगत कराने में हम लापरवाह हैं.आज मीडिया में बलात्कार, क़त्ल, हत्या,लूट मारपीट की ख़बरें ज्यादा आती है. मीडिया रक्षक से ज्यादा भक्षक बनने की ओर अग्रसर है.दरअसल मीडिया एक पैड सर्विस बनता जा रहा है.अगर कोई खबर मीडिया में आने से रोकनी हो तो उस के लिए कुछ जेब ढीली कीजिये और आपका काम हो गया जैसे बहुत  सारे उदाहरण है जैसे  अमर सिंह का स्टिंग ऑपरेशन,अनेक आईएएस अधिकारियों के घरों पर आयकर विभाग के छापों की खबर हो, चाहे नीरज ग्रोवर हत्याकांड हो, आरुषि हत्याकांड हो,चाहे आदर्श घोटाला हो,चारा घोटाला हो,२जी स्पेक्ट्रम घोटाला हो,सीडब्लूजी घोटाला हो सभी में  मीडिया ने अपनी छवि को और धूमिल किया है और वह सच्चाई को सामने लाने में असफल रहा है. आज मीडिया  प्रभावशाली  लोगों की हाथों की कठपुतली की तरह हो गया है.वो नेताओं के बेटे और बेटियों के विवाह का बड़े स्तर  पर कवरेज करता है.फ़िल्मी सितारों की पर्सनल जानकारियां भी अपने समाचारों में शामिल करता है. जैसे ऐश्वर्या राय को बेटी होगी या बेटा- मीडिया के लिए यह टॉप मोस्ट खबर है वे यह नहीं सोचते की इस खबर से ज्यादा महत्वपूर्ण खबर जनसामान्य से जुडी कोई बात हो सकती है.अगर कोई नेता गिरफ्तार हो जाता है तो मीडिया उसके सोने जागने से जुडी सारी बातें ब्रेकिंग न्यूज़ में शामिल करता है जिनकी वास्तव में कोई जरुरत नहीं है.आज मीडिया में अनेक वार्ता या विचार विमर्श से जुड़े कार्यक्रम आते है जिनमे कुछ विशेष मेहमानों को ही  शामिल किया जाता है .ज्यादातर उन मेहमानों पर चीखता चिल्लाता एंकर कभी भी खोजी पत्रकारिता का विकल्प नहीं बन सकता. टीवी चैनल की रिपोर्टिंग टीम अख़बारों के मुकाबले छोटी होती है.ज्यादातर खबरिया चैनल घाटे में डूबे है.पेचीदा मामलों पर उनके पास विशेषज्ञ नहीं है.अगर मीडिया के तेवर  चढ़े हो  तो नेताओं की हालत पतली हो जाती है.जैसा की आजकल हो रहा है. मीडिया द्वारा अन्ना हजारे के अनशन को महत्व देने से सरकार को अपनी स्थिति बार-बार अच्छी बनाने की कोशिश करनी पड़ रही है.इस घटना से सबक लेते हुए  मीडिया को वास्तविक तौर पर अपनी जिम्मेदारी को  समझना होगा और उसे जन कल्याण से जुड़े उद्देश्यों के प्रति समर्पित रहना होगा वरना टीआरपी और कमाई की अंधी दौड़ उसे आम जनता के बीच कहीं का नहीं छोडेगी.दुनिया के सबसे बड़े मीडिया मुग़ल रूपर्ट मर्डोक का उदाहरण हमारे सामने है.                                                                                                          

Thursday, August 18, 2011

अन्ना ही क्यों आहुति तो हम सभी को देनी चाहिए

कुछ ही दिन बाद हम अपने देश के स्वाधीनता की ६६वी सालगिरह मनाने वाले है.क्या हम वाकई इस अवसर को मनाने के हकदार हैं?.यदि हाँ तो क्यों नहीं हमें सभी तरह की स्वतंत्रता प्राप्त है. हमें केवल कागजी तौर पर ही आज़ादी प्राप्त  है.हमें  अपने विचारों को व्यक्त करने से भी रोका जाता है. उन्हें दबाने के लिए साम,  दाम, दंड, भेद सभी उपायों को अपनाया जाता है. आम आदमी तो दूर हमारे प्रतिनिधियों तक को बख्शा नहीं जाता जैसा कि हमें जेपी से लेकर अन्ना हजारे तक कई बार देखने को मिल चुका है. ज्यादा पुरानी बात नही उसी तरह के उद्देश्य को लेकर अन्ना हजारे और उनकी टीम ने  एक बार फिर२५ जुलाई को भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए जन लोकपाल बिल को उसके उचित स्वरुप में लागू करवाने के लिए अनशन की घोषणा की है.
    .                                       हमारे लिए सोचने की बात यह है कि क्या इस देश का नागरिक होने के बाद भी अपने विचारों को आगे बढ़ाने की स्वतंत्रता नहीं.खैर अन्ना की इस  क्रांति का परिणाम जो भी हो इतना ज़रूर है कि दूसरी आज़ादी की लड़ाई के लिए एक बार फिर महात्मा गाँधी का प्रतिरूप हमारे साथ है जिसका लड़ने का तरीका भी अहिंसावादी है विचार/व्यवहार सभी गांधीवादी है तो फिर क्यों नहीं हम सभी भारतीयों को इस महात्मा की नई अगस्त क्रांति में अपने समर्थन की आहूति  देनी चाहिए.जन आंदोलनों तथा संसदीय प्रक्रियाओं के बीच एक सहयोग और टकराव के द्वन्द से लोकतंत्र और मज़बूत होगा.आपातकाल को याद रखना  भी ज़रुरी है.क्योंकि वो हमारे इतिहास का कटु अध्याय है इसलिए किसी भी सत्ता को आन्दोलनों का मुकाबला प्रशासनिक नहीं बल्कि राजनैतिक तरीके से करना चाहिए .अगर हम अपनी बात कहने के लिए शांतिपूर्ण तरीका अपनाते है तो वो लोकतंत्र को मजबूत करता है.हम पहले हुए आंदोलनों को देखें तो जेपी आन्दोलन के दूरगामी परिणामों ने लोकतंत्र को और परिपक्व बनाया.इस आन्दोलन में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा था ,इस तरह के आंदोलनों से लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को खुद की कमी दूर करने का अवसर मिलता है.अन्ना ने सरकार को अपनी ही रणनीतियों पर बार बार विचार को मजबूर भी किया.अन्ना का चाहिए है कि सरकार को अन्ना के आन्दोलन को मिस्र या अन्य अरब देशों में बने बगावती हालात बनने के पहले शांत करवाना चाहिए. कहीं ऐसा न हो कि हुस्नी मुबारक जैसी स्थिति हमारे नेताओं की हो जाये. वैसे विश्वास में कमी,मानवीय मूल्यों में कमी,अपनेपन की कमी जैसी कमियों की भावना भ्रष्टाचार को जन्म देती है.स्वार्थ असुरक्षा की भावना भी एक अन्य कारण है.आज हमारा देश जनसँख्या में विश्व का छटवा देश है.भारत के नागरिकों को अपनी संस्कृति और आध्यात्मिकता पर गर्व होना चाहिए.प्रगति और खुशहाली का सही अर्थ हर ओर खुशी होता है.हम सभी को इस के लिए एक मजबूत और भ्रष्टाचार मुक्त,प्रगतिशील राष्ट्र बनाने में संलग्न हो जाना चाहिए.और प्रण करना चाहिए की न खुद भ्रष्ट बनेगे और ना ही देश को भ्रष्टाचार की गर्त में जाने देंगे चाहे इसके लिए एक जुट होकर संघर्ष क्यों ना करना पड़े.क्यों ना हमें अपना सर्वस्व न्योछावर करना पड़े हम इसे अपना कर्तव्य समझकर सदैव इस के लिए प्रयासरत रहेंगे..... !यह देखना दिलचस्प होगा की सरकार इस बार क्या कदम उठती है. इस आन्दोलन के बाद जिस से देश सच्चे अर्थों में भ्रष्टाचार मुक्त और प्रगतिशील बने ...........

Monday, August 8, 2011

बीमार होना है तो जमकर करो मोबाइल पर बात

आज के समय में मोबाइल हर युवा दिल की धडकन बन चुका है. तो दूसरी ओर प्रतिष्ठा का प्रतीक  भी है. आज करोड़ो   मोबाइल उपभोक्ता है.मोबाइल उनके जीवन शैली के साथ उनका सबसे विश्वसनीय मित्र साबित हो रहा है.वे हर वक्त इसके बिना अपने को अधूरा महसूस करते है.लेकिन अगर बात स्वास्थ्य से जुडी हो, तो विचार करने की ज़रूरत है.भूमंडलीकरण के इस दौर में दुनिया सिमटकर गाँव बन गयी है.इससे नयी तकनीक का तेज प्रसार होता है.जिस तरह मोबाइल का प्रसार हुआ,  उसमे समय पर चेतावनी मिलने की सम्भावना कम होती है.मोबाइल के प्रसार को प्रगति के प्रतीक के रूप में प्रचारित किया गया.जब किसी उत्पाद के साथ आर्थिक हित जुड़े हो तो उनके खतरों को छिपाने का प्रयास ज्यादा होता है.यह भी निश्चित है कि लोगों को मोबाइल से अनेक लाभ नज़र आये.भारत सहित पूरी दुनिया में २४ घंटे संपर्क को बनाये रखने में ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्युनिकेशन सेवा(जीएसएम) प्रारंभ की गयी.जीएसएम ने पूरे भारत में दूर संचार क्रांति को पहुँचाने में मदद की.. मोबाइल के लंबे इस्तेमाल से १५% लोग मानसिक परेशानियों से जूझ रहे है.                                                       
भारत सरकार के संचार-सूचना तकनीक मंत्रालय ने मोबाइल से जुड़े खतरों के अध्यन के लिए एक अंतर मंत्रालय समिति का गठन किया है. जिसने अपनी रिपोर्ट में मोबाइल फोन और इनके टावर से निकलने वाले रेडियेशन से याददाशत कमजोर होना,पाचनतंत्र में गडबडी होना,अनिद्रा,थकान,सिरदर्द आदि खतरे जुड़े है.इससे ब्रेन केन्सर भी हो सकता है.बाद   में  थायरोइड केन्सर की सम्भावना है.ह्रदय की धमनियां खराब होने से अचानक मौत हो सकती है.श्वेत रक्त कणिकाओं में कमी से रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है.प्रजनन अंग क्षतिग्रस्त हो जाते है जिससे अस्थायी नपुंसकता आ जाती है.आज के युवा हर दिन अपनी रिंग टोने बदल देते है.इन टोन की मस्त धुन सुनते युवा अपने दिल को कमजोर बना रहेहै.आज मोबाइल की बैटरी फटने के भी कई उदाहरण हमारे सामने है.                                                                         
 इन खतरों को कम करने के लिए कुछ सावधानियां बरती जा सकती है.जब तक संभव हो लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल करे,..लंबी बात मोबाइल पर न करें,कमजोर सिग्नल की स्थिति में मोबाइल के उपयोग से बचे,फोन को पास रखकर न सोये,इसे सिर और तकिये से दूर रखे,रात में इसे स्विच ऑफ कर देना चाहिए,बच्चोंको मोबाइल से दूर रखना बेहद ज़रुरी है. उपभोक्ता बेहतर गुणवत्ता वाला मोबाइल फोन खरीदकर अपने खतरे को कम कर सकते है. हैण्ड सेट को पहनकर बात करने की आदत डाले.मोबाइल खरीदते समय ध्यान रखें कि उसमे निम्न स्तर का एसएआर  हो.जो आपकी
शरीर पर रेडियो तरंगों का प्रभाव मापता है.संवाद के लिए जहाँ तक सम्भव हो एसएमएस का इस्तेमाल करें. जिस से हम अपनी इस आधुनिकतम खोज को वरदान के रूप में
अपना सकें और अपने देश कि प्रगति को नए आयामों कि ओर ले जा सकें..........!                                  

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