Wednesday, February 14, 2018

मनोरंजन के नाम पर क्या गंदगी परोस रहा है टीवी !!


                       
क्या बुआ-मामा जैसे रिश्ते हमारे परिवारों को जोड़ने की कड़ी है या फिर तोड़ने की ? क्या जोधाबाई-पद्मावती या फिर चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रेम आज की युवा पीढ़ी के भोंडे प्रेम की तरह था या फिर पांच साल के बच्चे को ‘एक आँख मारू तो....’नुमा गीत पर अपनी गायन या नृत्य प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए वैसे ही अश्लील हावभाव प्रदर्शित करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है? दरअसल ये तमाम सवाल आज टीवी पर चल रहे विभिन्न सीरियलों और कथित रियल्टी शो से उपजे हैं.
क्या आज का मनोरंजन वाकई इस श्रेणी का है, जो हमारे जीवन में कुछ अच्छे संस्कारों का बीज बो सके,शायद नहीं क्योंकि मनोरंजन के रूप में हमें जो परोसा जा रहा है,वो केवल वास्तविकता से परे और काल्पनिक संसार को तो बनाता है.कहीं ना कही आपसी रिश्तों में दूरियों का सबब भी बना है,आप सोचेंगे ऐसा क्यों तो उस से जुड़ा एक उदाहरण टीवी में दिखाए जा रहे धारावाहिकों में कॉमेडी के नाम पर भी फूहड़ता का परिचय मिलता है,वही पारिवारिक धारावाहिक में रिश्तों को काफी तोड़ मरोड़ के पेश किया जाता है,बल्कि रिश्तों में प्यार,अपनापन,सहयोग,सम्मान,विश्वास को दरकिनार करके अपमान,नफरत, धोखा का बोलबाला दिखाया जाता है,जिसने समाज में एक विकृत मानसिकता को जन्म दिया है, ये कहीं ना कहीं समाज के माहौल को बिगाड़ रहा है.इसी तरह रिएलिटी शोज़ ने प्रतिभाओं को आगे लाने के साथ-साथ बच्चों को उनकी उम्र से ज्यादा बड़ा बना दिया है,इन शोज़ में दो शो की चर्चा करना जरूरी समझती हूँ एक है सारेगामापा लिटिल चेम्प्स जिसने बच्चों को गाने के क्षेत्र में नाम कमाने और फिल्मों में गाने का मौका तो दिलाया है, पर उस कार्यक्रम में जजों और प्रतिभागियों के बीच चुनौती देने का एक राउंड शामिल किया था,जिसमें जजों ने प्रतिभागियों को अलग-अलग तरह के गाने की चुनौती दी, पर जो चुनौती प्रतिभागियों के द्वारा जजों के लिए रखी वो सम्मान का ह्रास ही कहा जाये,तो अतिश्योक्ति नहीं होगी उस श्रंखला में जजों की आधी मूँछ,बालों को कटवाना,शास्त्रीय गायकों को रैप जैसे गीत गाने बोलना, चूहों को मुंह से उठाना, उन्हें किसी भी धुन पर डांस करने को कहा जाता था,चेहरे पर कुछ भी लगा देना,उनकी इच्छा ना होते हुए भी उन्हें करने पर मजबूर होना पड़ता था,जैसे बच्चों के माध्यम से उनके व्यक्तित्व को धूमिल करने के प्रयास ज्यादा थे.इसी तरह बिग बॉस में भी प्रतिभागियों द्वारा एक दूसरे पर व्यक्तिगत कटाक्ष,होस्ट के साथ उनका व्यवहार,इन सबसे ऊपर साजिशों की भरमार,बिग बॉस द्वारा दिए गये टास्क में भी आपसी द्वेष का पुट साफ़ दिखाई देता था,जैसे इस बार के सीजन में पड़ोसियों को एक दूसरे पर नज़र रखने जेसे टास्क लांच किए,साथ-साथ उनके बीच सारी मर्यादाएं तोड़ते हुए चुम्बन और उनके बीच डेटिंग जेसे टास्क से किस तरह के मनोरंजन की कल्पना की गयी,क्या इस तरह के शोज परिवार के साथ देखे जा सकते है,इनके अलावा कुछ ऐतिहासिक,धार्मिक धारावाहिक जो इस समय प्रसारित हो रहे है,उनमें जो भी दिखाया है, उसकी प्रमाणिकता और सत्यता कहाँ तक सही है,जैसे जोधा-अकबर,पोरस,पृथ्वी-वल्लभ,टीपू सुल्तान,महारानी लक्ष्मीबाई,शेरे-ए पंजाब महराजा रणजीत सिंह,चन्द्रकान्ता, पेशवा बाजीराव, चन्द्रगुप्त मौर्य,चित्तोड़ की रानी पद्मिनी,चाणक्य,मिर्ज़ा ग़ालिब,रज़िया सुल्तान,इसीतरह धार्मिक विषयों पर आधारित सीरियलों जैसे धर्मक्षेत्र,द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्,लवकुश, पदमावतारश्रीकृष्ण,संकट मोचन महाबली हनुमान,विष्णु पुराण, सिया के राम, महाकाली,सूर्यपुत्र कर्ण इत्यादि जैसे सीरियलों में जो भी कुछ प्रदर्शित किया जा रहा है वो ग्रंथों से भी परे प्रतीत होता है.
   प्राचीन समय से ही मानव जीवन में अनेक आवश्यक भाग है, जो उसके लिय अनुकूल जीवन में मददगार है,जिनमें आवास, शिक्षा,आहार, व्यवसाय,और मनोरंजन प्रमुख है. पहले के समय में खेलकूद और लोकसंगीत ही मनोरंजन का माध्यम था,धीरे-धीरे विकास के दौर में इन साधनों में भी बदलाव आया, रेडियो और टेलीविजन ने इस में एक नया आयाम जोड़ा.रेडियो ने शहरों और ग्रामों में लोगों को बाहरी दुनिया से जुड़ाव महसूस कराया वरन उनके लिए ज्ञानवर्धन और गीत संगीत से भी अपनत्व कायम किया,रेडियो केवल सुनकर मनोरंजन करवाता था,वही दूसरी ओर टेलीविज़न ने सुनने और देखने वाले मध्यम के तौर पर सभी को आश्चर्यचकित किया. आज विज्ञानं की नयी क्रांति  मनोरंजन के साधनों में नूतन स्वरुप को जन्म दिया है. इनमें मोबाइल का अविष्कार,होम थियेटर,इन्टरनेट गेम्स,सीडी प्लेयर्स,प्रमुख है. आज बच्चों का जीवन इन्ही में सीमित है, वे अपने परम्परागत मनोरंजन के साधनों को हीन दृष्टि से देखते है,उनके लिए मोबाइल,लैपटॉप के इर्दगिर्द जीवन पूर्ण है.पर क्या आज जिस तरह का मनोरंजन हमारे सामने आ रहा है वो हमारे बच्चों को क्या सिखा रहा है, मनोरंजन ने बच्चों को उम्र से पहले होशियार बना दिया. इंटरनेट ने बहुत से क्षेत्रों में काम आसान कर दिया है,एक बात ये भी है कि इंटरनेट बच्चों को किताबी ज्ञान से विमुख कर रहा है.पहले हम कोई भी विषय की पढाई को उचित रूप से करने के लिए पाठ्य पुस्तक के साथ कई ओर किताबों से अध्ययन करते थे.आज बच्चों की पढाई और किसी भी समस्या का समाधान उन्हें इंटरनेट में ही दिखाई देता है,अगर उनके बड़े उनसे बोले इंटरनेट का कम उपयोग करने कहे तो उन्हें लगता है कि हम उनकी आज़ादी में खलल डाल रहे, क्या ये माहौल इंटरनेट की देन है? आज टेलीविज़न सीरियल्स भी कही ना कही इस सब के लिए जिम्मेदार है.जिनमें भले कॉमेडी से लेकर ऐतिहासिक और पारिवारिक से लेकर हारर जैसी तमाम श्रेणियों के सीरियल हमारे संस्कारों और संस्कृति का संरक्षण करने में सहभागी ना होकर असामाजिक,फूहड़ता और आधुनिकता के साथ पाश्चात्य संस्कृति को बढ़ावा देने का स्रोत बन गए हैं और   आज रिश्तों में दरार का कारण भी बन रहे है, एकल परिवार का बढ़ता ग्राफ भी भी इन्ही का परिणाम है. आज हम मनोरंजन के एक और पक्ष को इसमें शामिल किए बिना नहीं रह सकते,वो है चलचित्र अर्थात फिल्मों का मेला, जहाँ तकनीक की प्रगति तो साफ नजर आती है,वही दूसरी ओर उनकी कहानियां कई बार तो समाज के दर्पण का काम करती है और प्रेरणादायक भी हैं परन्तु कई बार चलचित्र में कहानी से ज्यादा अश्लीलताओं का बोलबाला होने लगा है,जैसे पैडमेन,टॉयलेट एक प्रेम कथा, दंगल,चक दे इंडिया,मेरी कोम,महेंद्र सिंह धोनी,सचिन तेंदुलकर,अज़हर जैसी फिल्में हम में जीवन में संघर्ष के साथ मिसाल बनने का जज्बा जगाती है,वही दूसरी ओर हम साथ-साथ हैं,विवाह,बंधन, दोस्ती, अनपढ़, रोबोट,कृष,मॉम ने हमारे बीच एक अलग छवि अभिव्यक्त की है,जहाँ तक अश्लीलता का बात है, तो मर्डर, हेट लव स्टोरी,जिस्म,टू स्टैट्स,मोहरा और कई फिल्में है,जिनमें गानों का प्रस्तुतीकरण अश्लीलता के सारे रिकार्ड तोड़ता आ रहा है. जब हमारे समाज और परिवारों के बीच इस तरह के मनोरंजन को पेश किया जा रहा है.तो सीबीएफसी[फिल्मों के निर्माण का नियन्त्रण बोर्ड] बीसीसीसी [टेलीविज़न कार्यक्रमों के विषयों पर नियन्त्रण]   जैसी संस्थाओं की लापरवाही का भुगतान हमें भोगना पड़ता है,जब इन संस्थाओं के कड़े मापदंड कुछ निजी स्वार्थों की बलि चढ़ रहे हो,तो क्या हमारा फ़र्ज़ नहीं बनता कि हम इन संस्थाओं की कार्यप्रणाली को सार्वजनिक करवायें, या अपनी जिम्मेदारी को निभाने में असफल संस्था के अधिकारियों को उनके पद से हटाने की मुहिम चलाने के प्रयासों से पीछे नहीं हटना चाहिए,इसके साथ-साथ सरकारों को भी कानून में बदलाव कर इनको सख्त से सख्त सज़ा का प्रावधान कराना चाहिए.

2 comments:

  1. Agreed with each & every sentence, which you have mentioned in your blog. It's true, but our society is accepting this.

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  2. आर्टिकल में बहुत सारे पहलु सोचने वाले तो है ही, पर यह भी सही है कि तरह तरह की ऑडियंस तरह तरह के शोज..

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