Friday, April 8, 2011

नहीं पढेगी बेटी, तो बर्बाद हो जायेगी नई पीढ़ी

         आज हमारे देश में सभी को मौलिक अधिकार प्राप्त है.जो हमें अनेक प्रकार की स्वतन्त्रता देते है.धार्मिक स्वतंत्रता,आर्थिक स्वतंत्रता,अपने विचार व्यक्त करने की आज़ादी,मत देने का अधिकार,आदि प्रमुख है.पर एक अधिकार ऐसा है जिसे पाने में हमें कई वर्ष लग गए.वो है सभी को शिक्षा का अधिकार,जिस बिल को सरकार ने कुछ समय पूर्व पारित किया है.परन्तु इस को सभी राज्यों में लागू करने में अनेक कठिनाइयों का सामना कर रहे है.केवल बिल पारित कर उसे राज्यों के ऊपर छोड़ने से सरकार की जिम्मेदारी पूरी हो सकती है.शायद नहीं क्योंकि राज्यों को आ रही कठिनाइयों के हल के लिए केंद्र सरकार का सहयोग आवश्यक है.आज अगर सभी सरकारें इसे पूर्ण रूप से लागू कर ले तो देश में साक्षरता के प्रतिशत में सुधार की उम्मीद कर सकते है.वैसे अब तक के आंकड़ों के अनुसार केरल राज्य देश में साक्षरता दर में सबसे आगे है.
                    आज हर राज्य अपनी इस दर के सुधार के लिए प्रयासरत है.पर प्रयास केवल कागज़ी रूप तक है. तो क्या केवल कागज़ी योजना बनाकर हम इस को हासिल कर सकते है? हमारे प्रयासों में कहाँ कमी रह जाती है. इस ओर भी ध्यान देने की जरुरत है. जिस से आगे के प्रयासों में किसी भी तरह ढील न बरती जाये और केवल बिल बनाकर पास कराकर उसे राज्यों को लागू करने का फरमान जारी करने करने से पहले वहां के ज़मीनी हालातों का जायज़ा लेना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है. प्रत्येक राज्य सरकार को इसे लागू करने के लिए उचित समय दिया जाये. और तब तक केंद्र सरकार का एक प्रतिनिधि इस पर नज़र बनाये रखे. समय समय पर वह इसकी जानकारी सम्बंधित विभाग को दे.इस तरह अगर सरकार योजना बनाये और लागू करे तो देश में क्रांति की नयी ज्योति जगे और कोई भी राज्य किसी भी शेत्र में पिछड़ेगा नहीं.यहाँ एक बात और भी जरुरी है.कि सरकार  योजनाओं को कानूनों को लागू करना केवल सरकार पर ही छोड़ना सही नहीं हमें भी एक सच्चे नागरिक की भूमिका अदा करनी चाहिए.क्योंकि "आज के बच्चे कल का भविष्य है "अतः उन्हें शिक्षा के अवसर अवश्य मिलने चाहिए.पर इन अवसरों में भेदभाव का फार्मूला न हो.जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तर्कसंगत है.आज हम अगर सभी राज्यों में लड़के लड़कियों के साक्षरता का प्रतिशत देखे तो  काफी चौकाने वाले आंकड़े सामने आएंगे.ज्यादातर राज्यों में लड़कियों की शिक्षा पर कोई  तवज्जों नहीं दी जाती है.आज भी हमारे समाज में लड़कों का पढ़ना जरुरी माना जाता है क्योंकि वो परिवार का नाम रोशन करेंगे   और लड़की अगर किसी तरह स्कूली शिक्षा प्राप्त कर ले,और आगे पढ़ना चाहे तो उसे यह कह कर रोक दिया जाता है कि तुम आगे पढकर क्या करोगी तुम्हें तो चूल्हा चौका संभालना है. वो गुर सीख लो. तो तुम्हारे काम आयेंगे.लड़का आगे पढ़ना चाहे तो उसकी हर इच्छा पूरी की जाती है. चाहे वो उचित हो या अनुचित क्योंकि वो कमाऊ सपूत बनेगा उसकी आमदनी से घर चलेगा.पर क्या अगर बेटी आगे पढकर जॉब करे तो क्या वो कमाऊ सुपुत्री नहीं बन सकती. पर यह परंपरावादी सोच को बदलना नहीं चाहिए और यह बदलाव तभी आएगा जब हमारे देश में लड़कियों को शिक्षित  होने के ज़्यादा अवसर मिलेंगे. तभी  तो शिक्षा का अधिकार बिल की सार्थकता पूर्ण होगी.  क्योंकि वर्तमान में कम शिक्षा के अवसर होते हुए लड़कियां पढ़ाई के शेत्र में लड़कों को मात दे रही है.आज आप लड़कियों को  पढ़ाई के साथ व्यापार, कला, खेल, पर्वतारोहण, अंतरिक्ष शेत्र में आगे बढ़ता देख रहे है.  उनकी उपलब्धियों को देख रहे है.फिर भी अपनी सोच में बदलाव को तैयार नहीं,आखिर क्यों?इस बात के साथ में एक और बात जोड़ना चाहती हूँ."हर पल जीने को संघर्ष करती बेटियां .......... बेटों की चाह में बिना जन्मे ही मर जाती है बेटियां"अगर आज शिक्षित माँ हो तो कन्या हत्या के मामलों में कमी आये.कुछ आंकड़ों के अनुसार २००५ में जनम के बाद १०८ कन्या शिशु की मौत हुई. जो २००९ में बढ़कर १८६ हो गयी.अगर ये ही स्थिति रही तो शायद अगले चार सालों में लड़के लड़कियों की जनसँख्या का अनुपात १०० लड़कों पर ० लड़कियां न हो जाये.अतः हमारी सरकारों की यह जिम्मेदारी बनती है.कि वो अपनी सभी कठिनाइयों से पार पाकर  इस बिल को लागू करें और देश की प्रगति में दोनों याने महिलाओं और पुरूषों को योगदान करने दे. और हमारे विकासशील देश को विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने में पूर्ण सहभागिता प्रदान करे...............       

1 comment:

  1. अब अवधारणा थोड़ी बदली है, शायद बहुत हद तक बदली है....बेटियों को लोग अच्छी शिक्षा दे रहे हैं, और बेटियां भी नाम रौशन कर रही हैं.

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