माननीय प्रधानमंत्री जी ,
सादर नमन,
आपके रेडियो कार्यक्रम “मन की बात” के लिए मेरे दो सुझाव हैं. उम्मीद है कि आप इन पर ध्यान देने का वक्त निकल पाएंगे. सुझाव थोड़े लेखनुमा हो गए हैं लेकिन सुझावों को उनकी पृष्ठभूमि में समझना जरुरी था इसलिए इतना लिखना पड़ा.

होना यह चाहिए कि इन राष्ट्रीय महत्व के दिनों पर रोज की तुलना में ज्यादा काम हो ताकि हम बापू,पंडित नेहरु और अम्बेडकर जैसे महापुरुषों को सही अर्थों में आदर दे सकें. अभी तक होता क्या है सरकारी कर्मी इन छुट्टियों के साथ शनिवार-रविवार जैसी छुट्टियां जोड़कर कहीं घूमने की योजना बना लेते हैं और कोई इन महान देश सेवकों को, उनके बलिदान, उनके कामों, शिक्षाओं और सिद्धांतों को पल भर के लिए भी याद नहीं करता. इसलिए इस अवसर पर होने वाले सरकारी कार्यक्रम भी महज रस्म अदायगी बनकर रह जाते हैं.
मुझे पता है कि सरकारी छुट्टियों को ख़त्म करने का काम इतना आसन नहीं है. इसलिए आरंभिक तौर पर यह किया जा सकता है कि इन सभी राष्ट्रीय पर्वों पर सरकारी कार्यालयों में अवकाश के दिन सामान्य कामकाज के स्थान पर रचनात्मक काम किया जाए मसलन गाँधी जयंती पर सभी सरकारी दफ्तरों में साफ़-सफाई हो तो नेहरु जयंती पर सभी लोग अनाथालयों, बाल कल्याण आश्रमों, झुग्गी बस्तियों में जाकर सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सुविधाओं से वंचित बच्चों से मिले और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने का प्रयास करें. इसीतरह अम्बेडकर जयंती पर सभी को संविधान की शिक्षा दी जा सकती है क्योंकि मुझे नहीं लगता अधिकतर सरकारी कर्मचारियों को भी आज ढंग से संविधान प्रदत्त अपने मौलिक अधिकारों और बतौर नागरिक देश के प्रति कर्तव्यों का ज्ञान होगा. छुट्टी के स्थान पर महापुरुषों पर केन्द्रित विशेष व्याख्यान जैसे तमाम आयोजन किये जा सकते हैं. कम से कम इसी बहाने लोग छुट्टी के दिन घर में बैठकर चाय-पकोड़े खाने के स्थान पर इन राष्ट्रीय पर्वों और हमारे महान नायकों का महत्व तो समझ सकेंगे.
2. मेरा दूसरा सुझाव यह है कि शनिवार-रविवार को तमाम सरकारी संस्थानों में अवकाश की वर्तमान व्यवस्था को भी परिवर्तित किया जाना चाहिए. किसी भी विकासशील देश के लिए क्या यह न्यायोचित है कि हर सप्ताह पूरे दो दिन सभी सरकारी दफ्तर एक साथ बंद रहें. कई बार अन्य छुट्टियां जुड़ने से दफ्तर बंद रहने का यह सिलसिला दो दिन से बढ़कर हफ्ते भर तक खिंच जाता है. मसलन हाल ही में, अप्रैल के पहले सप्ताह में पूरे हफ्ते भर तक सभी सरकारी दफ्तरों, बैंकों और अन्य संस्थानों में ताले लटके रहे. अब सोचिए, एक ओर तो हम नया वित्त वर्ष शुरू कर रहे हैं, वहीँ दूसरी ओर शुरुआत ही हफ्ते भर की छुट्टी से कर रहे हैं. हफ्ते भर दफ्तर बंद रहने से देश की उत्पादकता, वित्तीय लेनदेन,निवेश,व्यापार और इनसे जुड़े फैसले लेने जैसे तमाम कामों पर कितना असर हुआ? और इससे भी ज्यादा विदेशी निवेशकों/कारोबारियों के सामने हमारे देश की छवि क्या बनती है? इन सवालों पर विचार जरुरी है.
मैं, सरकारी दफ्तरों में छुट्टी के खिलाफ नहीं हूँ. मेरे पति भी सरकार कर्मचारी हैं. मेरा सुझाव यह है कि पांच दिन वर्किंग डे और दो दिन का साप्ताहिक अवकाश तो जारी रहे लेकिन इसे किन्ही दो दिनों पर केन्द्रित न कर सभी दिनों में बाँट दिया जाए जैसे कुछ लोग सोमवार-मंगलवार को अवकाश पर रहे तो कुछ बुधवार-गुरूवार को और कुछ कर्मचारी और किसी दिन. इससे यह फायदा होगा कि सरकारी कार्यालय साल के पूरे 365 दिन खुले रहेंगे और कर्मचारियों को भी हर सप्ताह दो दिन का अवकाश मिलता रहेगा. इससे न तो देश के विकास का पहिया कभी थमेगा और न ही कभी सरकारी कार्यालयों में काम-काज रुकेगा. इससे साल के 52 सप्ताहों में हर शनिवार-रविवार को दफ्तर बंद रहने से जो 100 दिनों से ज्यादा के मानव श्रम का नुकसान होता है उसे हम बिना अतिरिक्त मेहनत के भी बचा पाएंगे. इसके अलावा, सरकारी कमर्चारियों के क्रमवार छुट्टी पर रहने से सार्वजानिक परिवहन सेवाओं जैसे मेट्रों, बसों, ट्रेनों में भीड़भाड़ कम होगी तो सड़कों पर भी ट्रेफिक का दबाव कम होगा और महानगरों में घंटों लगने वाले जाम से भी छुटकारा मिल जाएगा. ये तो महज सामने से दिखाई पड़ रहे लाभ हैं परन्तु यदि गहराई से अनुसन्धान किया जाए तो और भी कई गंभीर फायदे नजर आ जायेंगे. तो सोचिए इस एक पहल से हमारे देश को कितना लाभ हो सकता है. बस पहल करने की जरुरत है और आपसे बेहतर यह काम और कौन कर सकता है.
आपने पढ़ने का वक्त निकाला.....धन्यवाद
-मनीषा शर्मा, गृहणी,सिलचर,असम