मन बंजारा दिलचस्प एक काव्य संग्रह है जिसे मेरी मित्र और जानी मानी कवियत्री और लेखिका निरुपमा खरे ने सृजित किया है। हमारे रोजमर्रा के जीवन के ताने बाने से जोड़कर इस कविताओं की श्रृंखला में प्रेमगीत, दहलीज मायके की, सतरंगी सा जीवन, मैं और मेरा अक्स, आंखों का दरिया, बर्फ और रिश्ते ऐसे अनेक शीर्षकों वाली कविताएं इस संग्रह में शामिल हैं।
निरुपमा जी को मैं पिछले कुछ सालों से जानती हूं। उनके बारे में क्या कहूं, जब भी मिलती हूं उनकी रचनाशीलता और स्वभाव के एक अलग ही पहलू का अनुभव होता है। उनके व्यक्तित्व के इतने पहलू है कि आप हमेशा उनसे मिलकर एक नई निरुपमा से मिलते हैं।
अब बात उनके काव्य संग्रह मन बंजारा की..तो वाकई उन्होंने जो शीर्षक दिया है वह न केवल तर्कसंगत है बल्कि पूरी तरह से उपयुक्त भी है। कहां से शुरू करें क्योंकि हर कविता हमें जीवन की सच्चाइयों से रूबरू कराते हुए साहित्यिक गुणवत्ता से सहजता से जोड़ देती है।
निर्मल आनंद के बीच ही हम सारे जीवन के तमाम अनुभवों को महसूस कर लेते है और इश्क की बाजियों से लेकर बेला चमेली की खुशबू तक महसूस कर सकते हैं। 'अंतहीन तलाश' कविता में हमारे आज के जीवन के अथक प्रयास के साथ लड़खड़ाते कदमों के बीच कुछ पाने की चाहत दिखाई देती है तो 'कांच के ख्वाब' में अपेक्षाओं का संघर्ष नज़र आता है।
'आईना' में खुद को ढूंढने के साथ भूत भविष्य के बीच का द्वंद्व है जबकि 'मन पाखी' ने मन की इच्छाओं को परिंदे से जोड़कर मन की व्यथा सुना दी है। 'खत' शीर्षक कविता आज के कंप्यूटरीकृत जीवन में उन सुनहरी स्मृतियों को सामने ले आती है जब हम अपने दुख सुख, प्यार एवं अहसास को इनके माध्यम से अभिव्यक्त करते थे।
कुल मिलाकर मन बंजारा काव्य संग्रह जीवन के तमाम पहलुओं,रंगों,विविधताओं और विशिष्टताओं को समेटे हुए इंद्रधनुष की खूबसूरती के साथ सृजनशीलता के समंदर से मोती तलाशने का काम करता है। वाकई पठनीय और सराहनीय सृजन के लिए निरुपमा जी को बधाई।