“कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती” इस पंक्ति से मेने अपने
कोरोना काल के सबक के पहले भाग का समापन किया था. आज में उसमे कुछ और बिन्दुओं को
जोड़ने की ओर अग्रसर हु.जिनमें सबसे पहले कोरोना के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए
किये जा रहे प्रयासों के बारे में कुछ बात करते है, जैसा कि हम सभी को पता है
इसके लिए सभी देशों ने लॉकडाउन को लागू किया है . जो इसके लिए सबसे
कारगर कदम के तौर पर दिख भी रहा है. लेकिन क्या लॉकडाउन के द्वारा इस वैश्विक
महामारी से पूर्णत बचाव सम्भव है. आज सभी देशों में लोगों को घर पर रहकर अपना बचाव
करने की सलाह दी जाती है. साथ ही साथ “वर्क फ्रॉम होम” की भी एक प्रक्रिया को
अपनाने पर जोर दिया जा रहा, अर्थात सभी ओफिसेस,फेक्ट्रियाँ और छोटे बड़े उद्योगों,
खेतों में भी कामकाज बंद सा हो गया है. इस प्रक्रिया को अचानक अपनाने के लिए कोई
भी पहले से तैयार नही था क्योंकि कोरोना ने कार्यक्षेत्र को प्रतिकूलता और असमंजस
की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है.जो किसी भी देश के लिए प्रगति और विकास में
अवरोध ही माना जायेगा.इस महामारी ने ना केवल भारत जैसे विकासशील देश को बल्कि
अमेरिका,स्पेन, जर्मनी,इटली जैसे विकसित देशों को भी डरा दिया है.
जब विकसित देशों पर इस महामारी ने इस हद तक बुरे असर दिखाए है. तो
हमारी तरह के विकासशील देशों की क्या बिसात, हमें तो अपने आर्थिक,सामाजिक,वैश्विक,असरों
पर गौर करना निहायती आवश्यक है. वर्तमान स्थितियों में देश में दवाइयों,खादयानों
जैसे आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सर्वोपरि है. इसके अलावा लॉक डाउन से सबसे ज्यादा
प्रभावित हो रहे मजदूरों और रोज़ कमाने रोज़ खाने वालों के बारे में ठोस प्रयासों को
लागू करने की जरूरत है. समाज के गरीब तबके से जुड़े लोगों के लिए लॉक डाउन और
social distencing का मतलब समझाने के लिए कई माध्यमों का सहारा लेना पड़ सकता है.
क्योंकि उनके जीवन का सार ही दो जून रोटी से ज्यादा कुछ नही है.इसलिय अभी की
स्थितियों में उनके बीच एक चिंता और भय का माहौल बन गया, जिससे वे अपने को असुरक्षित
महसूस कर रहे है. उनको अपनी आजीविका और अपने परिवार के लिए भविष्य से जुडी चिंताएं
सता रही है. इन्ही कारणों से उन ने अपने आजीविका वाले स्थानों को छोडकर अपने गृह
नगरों को जाना शुरू कर दिया हालाकि उनका ये फैसला उनके लिय भी आसन नही हुआ होगा,पर
इस महामारी ने उन्हें वो करने पर मजबूर कर दिया जो उनके भविष्य की योजनाओं पर
प्रश्नचिंह है.
आज सभी सरकारें अपना सम्पूर्ण प्रयास कर रही है,ताकि जनता को इस माहौल
में कोई परेशानियाँ ना हो.फिर भी इस बात पर सभी का पक्ष भिन्न है.कोई सरकार के इन
प्रयासों को ऊंट के मुह में जीरा की संज्ञा दे रहा है.पर अगर देखा जाए तो सरकार
केवल मजदूरों या रोज़ कमाने वालों की ही नही सभी की ओर पूरा ध्यान देने का प्रयास
कर रही है. जैसे सभी क्षेत्रों से आजीविका पाने वालों के लिए सरकार ने मालिकों को
उनका वेतन ना रोकने का आदेश देकर सहायता करने की कोशिश की.गरीबी रेखा से नीचे
लोगों को भी तीन महीने तक का राशन आपूर्ति की जा रही. इस विकट परिस्थिति में सभी
को एक जुट होकर काम करने की जरूरत है, जिससे देश जल्द से जल्द इस महामारी से निजात
पा ले.अब हम कुछ और क्षेत्रों की बात करना चाहेंगे जो इस स्थिति में भी योद्धा की
भांति रणभूमि पर अनवरत लगे हुए है इनमे नगरनिगम, नगरपलिका, मीडियाकर्मी, पुलिस,
चिकित्सा विभाग, किराना दुकानों के मालिक, सब्जी बेचनेवाले,आदि जो अपने प्राणों की
चिंता छोडकर देश सेवा की भावना को नया स्वरुप देने की ओर अग्रसर है.
नगरनिगम,नगरपालिका के सभी कर्मी सभी शहरों,नगरों कस्बों,को स्वच्छ रखने में अपनी
पूरी क्षमता से लगे हुए है. जिसे से इस महामारी के दौर में कोई और बीमारी ना
उत्पन्न हो. चिकित्सा विभाग तो सबसे ज्यादा खतरों के बीच अपनी पूरी ताकत लगाकर
रोगियों की तीमारदारी कर रहा है , डॉक्टर्स,नर्सेज,वार्ड-बोयज़,कम्पाउंडर, सभी अपने
परिवारों और उनके प्रति अपनी जिम्मेदारियों को छोडकर अस्पतालों में दिन रात एक कर
रहे हैं .पुलिस का योगदान भी इस स्थितियों में किसी से कम नही आँका जा सकता,
क्योंकि वे तो सारे देश और प्रदेश में सुरक्षा और कानून सम्बन्धी सभी गम्भीर
दायित्वों का निर्वहन पूरी ईमानदारी और सजगता के साथ कर रहे है. वैसे
भी पुलिस का कार्य सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.पुलिस सेवा ऐसा क्षेत्र है,जिसे
देश,प्रदेश,शहर,नगर,गाँव तक सभी जगह सुरक्षा और क़ानूनी मसलों को हल करने का
दायित्व दिया गया है. इस कारण उनको पुरे तौर से अपने को समर्पित करना पड़ता है. अभी
हाल में मैंने कई उदाहरण सुने और देखे जो अपने पारिवारिक दायित्वों को छोडकर देश
प्रदेश के दायित्व को महत्व दिया.मध्यप्रदेश में पुलिस के ड्यूटी करने वाली महिला
पुलिस अपनी ड्यूटी से फ्री होने पर भी घर पहुचने के बाद मास्क बनाने में लग जाती
है. कई स्थानों में पुलिस ने फ़िल्मी गानों की राग पर कोरोना से लोगों को जागरूक
करने के लिए गानों का सहारा लिया, कुछ पुलिस कर्मियों ने तो आदर्श प्रस्तुत किये.
अपने गृह नगर से अपने ड्यूटी स्थलों तक पहुचने के लिए कई सौ किलोमीटर पैदल चलकर
रास्ता तय किया. ये कही ना कही उनके अपने ड्यूटी के प्रति कर्तव्यपरायणता को
प्रदर्शित करता है.जो हम सभी के लिए प्रेरणादायक है. अब हम एक और महत्वपूर्ण
सेवाओं की बात करते है,जिसने आज महामारी के दौर में हम सभी को सही और सटीक जानकारी
पहुचाने में बड़ा योगदान दे रहे है. अब आप सोचेंगे मै किस बारे में बात कर रही तो मैं आपको बताना चाहूंगी कि मीडिया में संचार
माध्यम के तौर आकाशवाणी और दूरदर्शन, समाचार-पत्र, न्यूज़ चेनल्स भी है. इनमे से कई
दिन रात एक करते हुए हमारे लिए सार्थक तथ्यों को हम तक पहुचाने का प्रयास कर रहे
है. जेसे आकाशवाणी ने तो कोरोना के बारे
में जानकारी देने के लिए एक तो एक घंटे का विशेष बुलेटिन प्रसारित कर रही है, इसके
अलावा हर घंटे में कोरोना से जुडी तत्कालिक जानकारियों को ग्रामीण और शहरी
क्षेत्रों में पहुचा रहे है.इन सबके साथ कुछ कोरोना से जुड़े जानकारी के साथ विशेष
मनोरंजक कार्यक्रम भी प्रसारित हो रहे है. एक बात जो इस समय जरूरी है वो हे कहाँ, कौन,
किस तरह कोरोना के लिए मदद कर रहे, और
senitaizer और पी पी इ का निर्माण कर रहे,और कहा से इन्हें पा सकते है,के बारे में
भी जागरूकता फेलाने का काम कर रहे इन सबके साथ चिकित्सकीय विशेषज्ञों से भी परमर्श
प्रदान कराया जा रहा है. इन सबके साथ इलेक्ट्रोनिक मीडिया द्वारा भी इस महामारी से
बचाव के लिए सरकार के प्रयासों को देश के नागरिकों तक पहुचाने का प्रयास किये जा
रहे है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने लॉक डाउन की स्थिति में नागरिकों को घर में रहने
के लिए प्रेरित करने के लिए अपने लोकप्रिय मनोरंजक कार्यक्रमों का प्रसारण एक बार
पुनः शुरू किया है. जिनमे कुछ विशेष रामायण,महाभारत,चाणक्य, शक्तिमान, सर्कस,
सारेगामा लिटिल चेम्प्स आदि. ने दर्शकों की इस असमंजस की स्थितियों में एक अच्छे
और पक्के दोस्त की तरह का साथ दिया है.
वैसे भी इस संकट की घडी को हम सब मिलकर सहयोगी बन कर ही पार कर सकते
है. जैसे एक बड़ा परिवार का मुखिया अपने सभी सदस्यों के साथ मिलकर किसी भी बड़ी
मुसीबत का हल निकल लेता है.वैसे ही हमें भी देश के मुखिया प्रधानमंत्री जी की
बातों को मानकर घर में रहकर,-दूर दूर रहकर और शारीरिक दूरी कायम कर लेकिन भावनाओं
से परस्पर जुड़कर इस कोरोना की मुसीबत का हल निकाल सकते है. आज की स्थितियों में
बशीर भद्र साहब की ए पंक्तियाँ बिलकुल सटीक लगती हैं.
जो गले मिलोगे तपाक से,
कोई हाथ भी ना मिलाएगा
ये नए मिज़ाज़ का शहर (मर्ज़)
है
जरा फासले से मिला करो..
.