शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

*मानवीय संवेदनाओं का सारगर्भित चित्रण है ‘आरसी अक्षरों की

आरसी अक्षरों की’ हम सभी की भावनाओं, विचारों, अनुभवों चुनौतियों, अंतर्द्वंदों, कशमकश और मानवीय संवेदनाओं को सारगर्भित रूप में अभिव्यक्त करने का व्यवस्थित प्रयास है।वैसे भी, ‘आरसी अक्षरों की‘ कविता संग्रह की कवियत्री डॉ मोना परसाई स्वयं एक भावुक और संवेदनशील व्यक्तित्व की धनी है और सदैव मानवीय जीवन से जुड़े रोजमर्रा के विषयों पर काफी लंबे समय से लिख रही हैं।

‘आरसी अक्षरों की‘ में  सभी कविताएं एक से बढ़कर एक हैं लेकिन मुझे जिस कविता ने सबसे ज्यादा आकर्षित किया..वह है “लड़की नदी है”। जिसमें मोना ने लड़की को कई उपमाओं के जरिए अभिव्यक्त किया हैं जैसे तितली, चिड़िया और  वेग के साथ बहती नदी। वहीं, अन्य उल्लेखनीय कविताओं का ज़िक्र करें तो “गोल सिक्के गोल रोटी” में ढोल पीटने के साथ एक निरपराधी, एक धोखे से ग्रस्त स्त्री, काम खोजने निकले बेरोजगार, आजादी की मांग करते छात्रों, प्रौढ़ स्त्रियों की मनोदशा का चित्रण है। ”गुलमोहर” में जीने की तपिश को सूरज की आग और गुलमोहर के सुर्ख नाजुक फूलों से बताया गया है।

 “उस दोपहर” से आज की पीढ़ी के सपनों और उनके पूर्ण होने के बीच का द्वंद्व झलकता है तो ”गुजरते साल में” यादों के झरोखों को पेश किया गया है। “जीवन की विषमताओं” में अभावों और कठिनाइयों का वर्णन है और मेरी पसंदीदा आखिरी कविता जिसने मुझे सोचने पर विवश किया वह है “बेबसी” जो आज के परिवेश की सच्चाई से रूबरू कराती है जहां परिवारों में विघटन,पिता माता का इंतजार और बच्चों के सपनों की बलि चढ़ने जैसे तमाम भाव अभिव्यक्त हुए हैं ।

मोना जी की यह कृति कहीं न कहीं हमें अपने परिवेश और परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बनाने की ओर प्रेरित करती है। मोना वैसे भी साहित्य के हर स्वरूप मसलन कहानी और नाटक में भी अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं। वे रेडियो के लिए स्क्रिप्ट लेखन भी करती है इसलिए उनकी कविताओं में समाज के मनोभावों की गहरी समझ साफ नजर आती हैं। कुल मिलाकर ‘आरसी अक्षरों की’ एक पठनीय कविता संग्रह है।

मेरी ओर से उन्हें अनेक शुभकामनाएं और यह कामना भी कि वे अपनी प्रतिभा से साहित्य साधना में इसी तरह आगे बढ़ती रहें ।

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