शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

यारों की यारियां के साथ भावनाओं के तार से बुनी है ‘थैंक यू यारा’

थैंक यू यारा पर मेरी प्रतिक्रिया 

‘थैंक यू यारा’ कहानियों का एक ऐसा पिटारा है जो आस पास के परिदृश्य को भावनात्मक तौर पर व्यक्त करता है…जैसे आप अपनी ही कहानी पढ़ रहे हों। थैंक यू यारा वास्तव में अनकहे भावों की अभिव्यक्ति है। इस पुस्तक की लेखिका और आकाशवाणी भोपाल की लोकप्रिय एनाउंसर अमिता त्रिवेदी स्वयं एक भावुक और संवेदनशील व्यक्तित्व की धनी है इसलिए उनकी लेखनी में जीवन के हर रंग का एक अलग इंद्रधनुषी स्वरूप देखने को मिलता है।


कहानी “सुर्ख गुलाब” के माध्यम से वे एक संस्कारी विषय को रोचक अंदाज में समझाती हैं। जहां दो बहनों के बीच गुलाब के गुलदस्ते का घर में आना और परिवार के बीच उनकी वार्ता को बड़े ही रोचकता के साथ पेश किया, वहीं प्रभा दीदी का एक ऐसा व्यक्तित्व है जो उन दो बहनों के हर क्षण की साक्षी हैं। “गोल्डन कर्ल” भी ऐसी ही एक और रोचक कहानी है जिसमें चार सहेलियों के साथ में व्यतीत होते जीवन के अनुभव अभिव्यक्त हैं। इसमें शिक्षण विद्यार्थी संबंध के साथ साथ बच्चो की मनःस्थिति का चित्रण भी है।


“परिक्रमा“ में विशु और जया दोनों का चूड़ियों के प्रति मोह तो विशेष है ही, गुना शहर के साथ जुड़े पल, वहां की गलियों की दास्तां एवं उनकी तुलना पुराने भोपाल और न्यू मार्केट से.. हमें इससे जोड़ देती है। परिक्रमा में रिश्तों की परिक्रमा है मसलन पुरानी और नई पीढ़ी के संबंध, व्यवसायिक समझ, कलाकार और जानकार के संबंध, कला के पारखी और कलाकार की मनःस्थिति की अविरल धारा हमें बहने पर मजबूर कर देती है।


एक और हृदयस्पर्शी  कहानी “स्नेह बंध” है जो आज के समय में राखी जैसे पर्व की कटु सच्चाई को अपने में समाहित किए हैं। लिली एक हंसमुख व्यक्तित्व है,जो राखी से जुड़ी अपने बचपन की स्मृतियों को आज भी वैसे ही सहेजे है। वो दादा और भाई को हर साल राखी बांधती हैं, दादा मतलब उसके बड़े भाई और भाई मतलब चाचा का बेटा जो उसी के बराबर था, राखी पर चाचा और पापा के अलावा घचा (घनश्याम चाचा) सहित सभी को बुआ द्वारा भेजी राखी का इंतजार होता था, जैसे बुआ सशरीर आ गई।


 लेकिन दादा सहित एक एक कर परिजनों के जाने से राखी बेमानी और सूनी  हो गई और बच्चों के बड़े होते ही अब कुछ बदल गया । अब न तो पहले जैसा सावन रहा और न ही सावन में घर जाने का उत्साह। इसी कहानी में हम दोस्ती के रिश्ते के नए रूप से भी रूबरू होते हैं जब लिली अपनी मित्र चित्रा को राखी बांधने का कह कर स्नेह बंध की नई परिभाषा गढ़ती है।


“मावठा” एक ऐसे विषय पर चोट करती  है जो आज के समाज में ज्वलंत मुद्दा है। शादी ब्याह में उपहार या शगुन के नाम पर जो दिया जाता है,उस पर रोक लगाने के प्रयास में सुनयना, परिवार में अजीब माहौल और वैचारिक द्वंद ।

वैसे इस कहानी की जान वह पंक्ति है जो एक लाइन में पूरी बात को स्पष्ट कर देती है कि “”लेनदेन व्यापार में सुहाता है या व्यावसायिक संबंधों में। जीवन के रिश्ते इतने सस्ते नही हैं कि दौलत की तराजू पर तौले जाएं।”


“प्रार्थना और यूं भी होता है “जैसी कहानियां भी हमें झकझोर देती  हैं क्योंकि उनमें व्यक्त विषय हमारे समाज की एक अलग तस्वीर पेश करते है। थैंक यू यारा एकअनकही परंतु हमारे ही बीच की बातों का सार है। ये किताब आपको जरूर पढ़नी चाहिए क्योंकि इसके माध्यम से आप समाज की हकीकत से दो चार होते हैं। । 


किताब की लेखिका अमिता त्रिवेदी का इस किताब को लिखने का जो भी मंतव्य रहा हो पर वे अपने उद्देश्य में पूर्णतः सफल हुई है। उनके द्वारा अलग अलग भावनाओं और रिश्तों की अनछुई संवेदनाओं को बहुत ही कुशल कारीगर की तरह इस किताब थैंक यू यारा में उकेरा  गया है।

सोमवार, 14 जुलाई 2025

ब्लॉकबस्टर फिल्म की तरह है ‘भोपाल टॉकीज’

क्यूँ भाई मियां, भोपाल टॉकीज चल रिये को क्या… ये बात भोपाल वासियों के लिए कोई नई नहीं है। तो चलिए ऑटो में बैठकर भोपाल टॉकीज चलते हैं। आप सोच रहे होंगे कि क्या वाकई में आज भी भोपाल टॉकीज उतनी ही शानोशौकत से खड़ी है, जैसे पहले थी? शायद नहीं, पर फिर भी मैं आपको भोपाल टॉकीज ले जाए बिना नहीं मानूंगी।

आप सोच रहे होंगे कि भोपाल टॉकीज में ऐसा क्या है तो मैं स्पष्ट कर दूं कि मेरा आशय पुराने भोपाल में स्थित थिएटर से नहीं बल्कि हमारे अज़ीज़ संजीव (परसाई) भैया के सपनों की किताब भोपाल टाकीज से है. जिसमें हमें एक फिल्म की भान्ति प्यार, तकरार, इंकार ,इजहार, दोस्ती और चटपटी कहानियों  के साथ साथ एक अलग ही मसालेदार थ्रिलर का अनुभव मिलता है. यह किताब एक सफल और ब्लॉकबस्टर फिल्म की तरह कई पहलुओं को भी छूने की कोशिश है.

जहां एक ओर ये किताब आपको भोपाल की नवाबी विरासत से रूबरू कराती है.वही दूसरी ओर ये हमें भोपाली लहजे के साथ भोपाल के इतिहास के रोचक पहलुओं को भी सामने लाती है. ये किताब रानी कमलापति जैसी बेगमों और बेगम सुल्तान शाहजहाँ के रुतबे को जानने का माध्यम भी है. भोपाल की  पहचान हमी

शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

*मानवीय संवेदनाओं का सारगर्भित चित्रण है ‘आरसी अक्षरों की

आरसी अक्षरों की’ हम सभी की भावनाओं, विचारों, अनुभवों चुनौतियों, अंतर्द्वंदों, कशमकश और मानवीय संवेदनाओं को सारगर्भित रूप में अभिव्यक्त करने का व्यवस्थित प्रयास है।वैसे भी, ‘आरसी अक्षरों की‘ कविता संग्रह की कवियत्री डॉ मोना परसाई स्वयं एक भावुक और संवेदनशील व्यक्तित्व की धनी है और सदैव मानवीय जीवन से जुड़े रोजमर्रा के विषयों पर काफी लंबे समय से लिख रही हैं।

‘आरसी अक्षरों की‘ में  सभी कविताएं एक से बढ़कर एक हैं लेकिन मुझे जिस कविता ने सबसे ज्यादा आकर्षित किया..वह है “लड़की नदी है”। जिसमें मोना ने लड़की को कई उपमाओं के जरिए अभिव्यक्त किया हैं जैसे तितली, चिड़िया और  वेग के साथ बहती नदी। वहीं, अन्य उल्लेखनीय कविताओं का ज़िक्र करें तो “गोल सिक्के गोल रोटी” में ढोल पीटने के साथ एक निरपराधी, एक धोखे से ग्रस्त स्त्री, काम खोजने निकले बेरोजगार, आजादी की मांग करते छात्रों, प्रौढ़ स्त्रियों की मनोदशा का चित्रण है। ”गुलमोहर” में जीने की तपिश को सूरज की आग और गुलमोहर के सुर्ख नाजुक फूलों से बताया गया है।

 “उस दोपहर” से आज की पीढ़ी के सपनों और उनके पूर्ण होने के बीच का द्वंद्व झलकता है तो ”गुजरते साल में” यादों के झरोखों को पेश किया गया है। “जीवन की विषमताओं” में अभावों और कठिनाइयों का वर्णन है और मेरी पसंदीदा आखिरी कविता जिसने मुझे सोचने पर विवश किया वह है “बेबसी” जो आज के परिवेश की सच्चाई से रूबरू कराती है जहां परिवारों में विघटन,पिता माता का इंतजार और बच्चों के सपनों की बलि चढ़ने जैसे तमाम भाव अभिव्यक्त हुए हैं ।

मोना जी की यह कृति कहीं न कहीं हमें अपने परिवेश और परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बनाने की ओर प्रेरित करती है। मोना वैसे भी साहित्य के हर स्वरूप मसलन कहानी और नाटक में भी अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं। वे रेडियो के लिए स्क्रिप्ट लेखन भी करती है इसलिए उनकी कविताओं में समाज के मनोभावों की गहरी समझ साफ नजर आती हैं। कुल मिलाकर ‘आरसी अक्षरों की’ एक पठनीय कविता संग्रह है।

मेरी ओर से उन्हें अनेक शुभकामनाएं और यह कामना भी कि वे अपनी प्रतिभा से साहित्य साधना में इसी तरह आगे बढ़ती रहें ।

शुक्रवार, 30 मई 2025

ऑपरेशन सिंदूर: शौर्य,पराक्रम और बदले का संकल्प!


ऑपरेशन सिंदूर भारतीय सशस्त्र बलों की अभूतपूर्व सामरिक क्षमता का प्रमाण है। भारतीय वायु सेना, थल सेना और नौसेना ने संयुक्त रूप से पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoJK) में जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के नौ आतंकी ठिकानों को नष्ट किया। मुरिदके, बहावलपुर, सियालकोट, मुजफ्फराबाद और कोटली जैसे क्षेत्रों में सटीक हमले किए गए, जिनमें SCALP क्रूज मिसाइल, हैमर प्रिसिजन-गाइडेड बम और इजरायली ड्रोन जैसे उन्नत हथियारों का उपयोग हुआ। इन हमलों में कम से कम 100 आतंकवादी मारे गए, जिनमें कई शीर्ष कमांडर शामिल थे, जबकि किसी भी नागरिक या पाकिस्तानी सैन्य सुविधा को निशाना नहीं बनाया गया।

गौरतलब है कि 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने भारत को झकझोर दिया। लश्कर-ए-तैयबा से संबद्ध ‘प्रतिरोध मोर्चा’ ने इस हमले की जिम्मेदारी ली, जिसमें 26 नागरिक, मुख्यतः हिंदू पर्यटक, क्रूरता से मारे गए। इस हमले की बर्बरता ने न केवल भारत की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती दी, बल्कि भारतीय संस्कृति के एक पवित्र प्रतीक—सिंदूर—को अपमानित करने का दुस्साहस किया। आतंकियों ने जानबूझकर हिंदू पुरुषों को निशाना बनाया, उनकी पत्नियों को विधवा छोड़कर उनके माथे से सिंदूर मिटाने का कुत्सित प्रयास किया। इसके जवाब में भारत ने 6-7 मई 2025 की रात ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया, जो न केवल एक सैन्य कार्रवाई थी, बल्कि भारत की सामरिक दृढ़ता, कूटनीतिक परिपक्वता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बन गया। यह आलेख ऑपरेशन सिंदूर के सामरिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक आयामों का विश्लेषण करता है।

आपरेशन सिंदूर के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र ने नाम संबोधन में देश के सामने आतंकवाद को लेकर सरकार का रुख स्पष्ट किया। उन्होंने साफ कहा कि आज, हर आतंकी, आतंक का हर संगठन जान चुका है कि हमारी बहनों-बेटियों के माथे से सिंदूर हटाने का अंजाम क्या होता है। ऑपरेशन सिंदूर न्याय की अखंड प्रतिज्ञा है। श्री मोदी ने कहा कि आतंकियों ने हमारी बहनों का सिंदूर उजाड़ा था; इसलिए भारत ने आतंक के मुख्यालय को ही उजाड़ दिया। प्रधानमंत्री ने बताया कि पाकिस्तान की तैयारी सीमा पर वार की थी, लेकिन भारत ने पाकिस्तान के सीने पर वार कर उसके हौंसले पस्त कर दिए।

श्री मोदी ने भारत के कठोर रवैए का उल्लेख करते हुए कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने आतंक के खिलाफ लड़ाई में एक नई लकीर खींच दी है, एक नया पैमाना, न्यू नॉर्मल तय कर दिया है। उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर यह युग युद्ध का नहीं है, लेकिन यह युग आतंकवाद का भी नहीं है।

आतंकवाद के खिलाफ भारत की जीरो टॉलरेंस नीति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह नीति एक बेहतर दुनिया की गारंटी है। उन्होंने फिर दोहराया कि टेरर और टॉक, एक साथ नहीं हो सकते, टेरर और ट्रेड, एक साथ नहीं चल सकते, पानी और खून भी एक साथ नहीं बह सकता। पाकिस्तान के साथ बात होगी, तो आतंकवाद और पीओके पर ही होगी।

ऑपरेशन सिंदूर की योजना और निष्पादन में खुफिया एजेंसियों की भूमिका उल्लेखनीय थी। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के नेतृत्व में तैयार की गई रणनीति ने यह सुनिश्चित किया कि हमले सटीक और न्यूनतम सहायक क्षति (collateral damage) के साथ हों। भारतीय सेना ने पहली बार पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में गहरे तक प्रहार किया, जो आतंकी संगठनों के गढ़ माने जाते हैं। यह 1971 के युद्ध के बाद तीनों सेनाओं का सबसे बड़ा संयुक्त अभियान था, जो भारत की ‘घुस के मारेंगे’ नीति को साकार करता है।

ऑपरेशन सिंदूर का नामकरण अपने आप में एक शक्तिशाली सांस्कृतिक और भावनात्मक संदेश है। भारतीय संस्कृति में सिंदूर नारी के सुहाग, सम्मान और सौभाग्य का प्रतीक है। पहलगाम हमले में आतंकियों ने हिंदू पुरुषों को चुन-चुनकर मारा, ताकि उनकी पत्नियों का सिंदूर मिटाया जा सके और भारतीय समाज का मनोबल तोड़ा जाए। इस अपमान के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं इस ऑपरेशन का नाम ‘सिंदूर’ सुझाया, जो पीड़ित विधवाओं और भारतीय नारी शक्ति के प्रति श्रद्धांजलि था।

यह नाम न केवल आतंकियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई को दर्शाता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान को मजबूती से स्थापित करता है। ऑपरेशन की प्रेस ब्रीफिंग में दो महिला सैन्य अधिकारियों—कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह—को शामिल करना भी नारी शक्ति के सम्मान का प्रतीक था। यह कदम भारत की उस नीति को रेखांकित करता है, जिसमें सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक मूल्यों का समन्वय हो।

ऑपरेशन सिंदूर ने न केवल आतंकी ढांचे को ध्वस्त किया, बल्कि पाकिस्तान पर मनोवैज्ञानिक और कूटनीतिक दबाव भी बनाया। भारत ने सिंधु जल संधि को आतंकवाद से जोड़कर पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो को स्पष्ट कर दिया था कि भारत आतंकी ठिकानों पर हमला करेगा और किसी भी जवाबी कार्रवाई का मुंहतोड़ जवाब देगा।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया। ऑपरेशन के बाद भारत ने वैश्विक मंच पर यह स्थापित किया कि पाकिस्तान आतंकवाद का पोषक है। चार दिनों की तनातनी के बाद 10 मई को संघर्षविराम की घोषणा हुई, जिसे भारत की कूटनीतिक जीत माना गया।

ऑपरेशन सिंदूर ने भारत में अभूतपूर्व एकजुटता को जन्म दिया। सिमडेगा से जैसलमेर तक, चाय की दुकानों से मंदिर-मस्जिदों तक, लोगों ने भारतीय सेना की कार्रवाई की सराहना की। हिन्दू और मुस्लिम समुदाय सहित सभी ने देश की सुरक्षा के लिए दुआएं कीं।

सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी इस मसले पर सरकार का खुलकर समर्थन किया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस मुद्दे पर लिखा है कि पाकिस्तान और पीओके से पैदा होने वाले आतंकवाद के हर स्वरूप के लिए भारत की एक दृढ़ राष्ट्रीय नीति है। हम पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों पर सेना के हमले पर गर्व करते हैं। कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट में लिखा कि हम अपनी सेना पर गर्व करते हैं. जय हिन्द।

वहीं एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मैं हमारी रक्षा सेनाओं द्वारा पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर किए गए लक्षित हमलों का स्वागत करता हूँ. पाकिस्तानी डीप स्टेट को ऐसी सख्त सीख दी जानी चाहिए कि फिर कभी दूसरा पहलगाम न हो. पाकिस्तान के आतंक ढांचे को पूरी तरह नष्ट कर देना चाहिए. जय हिन्द। आरजेडी नेता और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा है कि जय हिंद! जय भारत! न आतंक रहे, न अलगाववाद रहे. हमें अपने वीर जवानों और भारतीय सेना पर गर्व है।

महिलाओं ने इस ऑपरेशन को विशेष रूप से अपने सम्मान से जोड़ा। झारखंड की मनीषा अग्रवाल ने कहा कि सिंदूर का मतलब सिर्फ श्रृंगार नहीं, बलिदान और गर्व भी है। पहलगाम हमले में शहीद शुभम द्विवेदी की पत्नी ने प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देते हुए कहा कि इस ऑपरेशन ने उनके पति की मौत का बदला लिया।

ऑपरेशन सिंदूर भारत के नए युग का प्रतीक है—एक ऐसा भारत जो न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करता है, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान को गर्व के साथ प्रस्तुत करता है। यह ऑपरेशन आतंकवाद के खिलाफ सैन्य कार्रवाई से कहीं अधिक था; यह भारत की सामरिक परिपक्वता, कूटनीतिक चातुर्य और सामाजिक एकता का प्रदर्शन था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ने भी कहा कि इस ऑपरेशन की धमक रावलपिंडी और इस्लामाबाद तक सुनी गई है।

ऑपरेशन सिंदूर ने दुनिया को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अब आतंक को उसकी भाषा में जवाब देगा। यह न केवल पहलगाम के शहीदों को न्याय दिलाने का माध्यम बना, बल्कि हर उस भारतीय के लिए गर्व का क्षण बन गया, जो अपनी संस्कृति और देश की संप्रभुता को सर्वोपरि मानता है। यह एक ऐसा प्रहार था, जिसने न केवल आतंकी ठिकानों को मिटाया, बल्कि भारत के माथे पर सांस्कृतिक गौरव का सिंदूर और गाढ़ा कर दिया।

संदर्भ:

Drishti IAS, 2025-05-07

Navbharat Times, 2025-05-11

Aaj Tak, 2025-05-10

TV9 Hindi, 2025-05-11

Aaj Tak, 2025-05-11

News18 Hindi, 2025-05-11

Live Hindustan, 2025-05-07

News18 Hindi, 2025-05-07

NDTV India, 2025-05-07

Prabhat Khabar, 2025-05-10

Amar Ujala, 2025-05-08

Navbharat Times, 2025-05-11

Panchjanya, 2025-05-12

मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

चुरीसिद्दू

ये शब्द पढ़कर आप सभी को कुछ हेरानी हो रही होगी कि ये क्या माज़रा है, क्या ये किसी का नाम है क्या ये किसी स्थान के लिए उपयोग में लाया गया है या किसी की  परम्परा का उदाहरण है ये किसी फसल का नाम है या ये किसी स्थान में पाई जाने वाली जड़ी बूटी है मुझे पता है आप ने जो भी अंदाज लगाये होंगे वो इस शीर्षक के आसपास भी नहीं होंगे जाहिर है आपको ये लग रहा होगा में ऐसे कोनसा  शीर्षक है जो आप की सोच से परे है,तो एक बात आपको बताऊँ नाम से वैसे ये एक क्रिकेटर का नाम भी लग सकता है याद आया चिर परिचित भारतीय बल्लेबाज और शानदार कमेन्टेटर नवजोत सिंह सिद्धू के बारे में तो कोई आर्टिकल नहीं लिख रही जिस वजह से मैने ये शीर्षक बनाया पर ये भी बात नहीं है दरअसल आज मैंने आपको एक अलग ही दुनिया की सैर का मूड बनाया जहा आप सभी इस चटपटी और मिठास से परिपूर्ण सैर के बाद आप अवश्य ही मुझे धन्यवाद दोगे अब आप के दिमाग में आएगा कि में तो सिद्धू जी  बात करते करते कहा चटपटी और मीठी  सैर को बीच में ले आई यकीन मानिए यही सच है ये शीर्षक वाकई दो व्यंजनों से मिलकर बना है दो व्यंजनों से मिलकर ये सिददूचुरी कैसे बना.


तो अब आप के सारे अटकलों को विराम देते हुए में राज़ खोलती हु कि ये एक नाम नहीं है ये दो व्यंजनों को मिलाकर बना एक शब्द है जिसने आपके दिमाग की काफी कसरत करवा दी. ये हिमाचल प्रदेश में शिमला में लोकप्रिय दो व्यंजन है.एक सिड्ड ,दूसरा है चुरी,ये दोनों ही वहाँ लोकप्रियता के सारे रिकार्ड तोड़ रहे जी आप ने सही पढ़ा सिड्ड जिसे हम देसी बाटी का एक अनोखा रूप कहेंगे क्योंकि जब वो आपके आँखों के सामने आएगा तो आपको यही लगेगा जेसे आपके सामने बाटी  घी और चटनी के साथ परोसा गया है पर ये भी है हमारे यहाँ तो बाटी  दाल भरते के साथ परोसते है, फिर ये कैसी  बाटी जो चटनी के साथ क्यों परोस रहे जी हां ये सिड्ड गेंहू और मैदा से बनते है ये एक प्रकार की नमकीन और मीठी रोटी का ही रूप है. इनको भरवा तौर पर बनाया जाता है नमकीन सिड्ड साबुतधनिया,हरीमिर्च,लहसुनकलियाँ,खसखस,अमचुर,जीरा पाउडर ड्राई यीस्ट पाउडर से बनाया जाता है.इसी तरह  मीठे सिड्ड में काजू,बादाम,सूरजमुखी के बीज,तरबूज के बीज,किशमिशअलसी,सफ़ेद तिल,और नारियल को उपयोग करते है.इन दोनों तरह सिड्ड को शुद्ध घी के साथ परोसा जाता है,और नमकीन सिददू को शुद्ध घी के साथ  हरी धनिया की चटनी पेश करते है, तो ये सिड्डआपके स्वाद में एक नयापन लाते है सिड्ड सर्दियों के मौसम में एक सर्वप्रिय नाश्ते के तौर पर भी जाना जाता है ये स्थानीय निवासियों से ज्यादा सैलानियों  को रुचिकर लग रहा है.

अब बात करे चुरी की जो एक मीठी डिश  के तौर पर प्रचलित है सिड्ड नमकीन और मीठी दोनों ही रोटी का रूप है वही चुरी रोटी से ही बनी हुई डिश है,जिसमें गेहू का आटा,शुद्ध घी और शक्कर या गुड कुछ भी ले सकते है,इसमें रोटी में घी,गुड या शक्कर मिलाकर उसकी चुरी बनाकर फिर उसमे ड्राई फ्रूट भी डाल सकते जिनसे इसका स्वाद और भी स्वादिष्ट हो जाता है.इन दो के अलावा भी हिमाचलप्रदेश में और भी डिशेज फेमस है,जिनमे बाबरु,अकतोरी,तुद्किया भात,कुल्लू ट्राउट,भे,धाम,मदरा,छागोश्त,मिट्ठा,काले चने का खाटा शामिल है. वैसे तो हिमाचल को देव भूमि कहा जाता है.और जहा देवता खुद वास करते हो वहा के खानपान में विविधता और स्वाद के साथ साथ देवों की कृपा भी मिली होती है.यानिकि इस देव भूमि के हर कोने में आपको एक नया स्वाद नयी रेसेपी के साथ नए अनुभव का संगम देखने को मिलेगा. 



गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

ज़िग जैग जीवन


ये शब्द पढ़कर आप सभी के मन में ये विचार आ रहा होगा कि ये कैसा जीवन क्या ये जीवन की चिंताओं, परेशानियों और दुखों के साथ आने वाले कष्टों के लिए लिखा गया है,तो ऐसा नहीं है मेरा इस शीर्षक से आप सभी को जीवन में ज़िगजैग मस्ती मज़ा और एक मस्तमौला व्यक्तित्वों की ओर संकेत है। जी हां मैं अपने शिमला ट्रिप की अगली श्रृंखला से अवगत कराना चाहती हु,जहां पर आप पहाड़ी मौसम,पहाड़ी खानपान, पहाड़ी सौंदर्य और पहाड़ी लोगों,पहाड़ी रास्तों से  रूबरू हो पाएंगे।

आज के जीवन में जहां सभी का जीवन रोज रोज नए नए तरह के अनिश्चितताओं का भंडार है, जहां हर कोई अपनी ही चिंताओं को सर्वोपरि रखने में व्यस्त हैं,वहां अगर आप शिमला की वादियों में भ्रमण करेंगे तो आप इन सभी को भूलकर नए अनुभव और नई ऊर्जा को महसूस करेंगे। जैसे आप सभी जानते है पहाड़ी प्रदेश होने के कारण यहां के रास्ते घुमावदार और खड़ी चढ़ाई वाले होते हैं, पर यहां के इन रास्तों में गाड़ियों की आवाजाही को जो मंजर मैने देखा वो तो अदभुत ही था। यहां सभी गाड़ीवान एक दूसरे को सहयोग करते हुए गाड़ी का परिचालन करते है, इतना ही नहीं वे जाम लगने की स्थिति जो बहुत कम बनती हैं तब भी सहयोग की भावना को बरकरार रखते है,जैसे अगर कोई गाड़ी ऊंचाई से आती दिख रही है तो वह एक दूसरे को सहयोग करके सकरे रास्ते में भी गाड़ी चलाने को आसान बनाते है।अगर जाम लग गया है जो वहां पर स्कूल लगने छूटने या किसी सड़क के काम चलने जैसी स्थिति में लगता है तब गाड़ी बंद करके एक एक गाड़ी के निकलने का इंतजार करते हुए परस्पर सामंजस्य की मिसाल देते है। अगर गाड़ी किसी वजह से बंद हो गई है तो उस गाड़ी को उचित मदद देकर एक अच्छे नागरिक होने का फर्ज निभाते हैं।एक बात और जोड़ना चाहूंगी यहां पार्किंग की व्यवस्था को देखकर भी आप दांतों तले ऊंगली दबा लेंगे, ये मैं इसलिए कह रही हु क्योंकि मैंने यहां पर हमारे तरह की मल्टीस्टोरी पार्किंग या अन्य तरह की पार्किंग कम देखी पूरे पहाड़ी रास्तों में आप कही भी जाए आपके रास्ते में पूरे में एकदूसरे से ऑलमोस्ट सटी हुई गाडियां पार्क दिखती है और उनको निकालना भी किसी कलाकारी से कम नहीं, मतलब इस तरह की पार्किंग करना और गाड़ी निकालने की कला ने तो मुझे अपना कायल बना लिया।

वैसे तो पहाड़ी क्षेत्र मैदानी क्षेत्रों की तुलना में अनेक असमानताओं के साथ अपना अस्तित्व बनाने में व्यस्त है। वे यहां की विषमताओं के बावजूद अपने आप को एक ऐसे प्रदेश के तौर पर विकसित कर रहे जो आने वाले सैलानियों के लिए जादुई लोक की अवधारणा को पूर्ण करे ।।


शनिवार, 12 अप्रैल 2025

खूबसूरती और मोहिनी शक्ति शिमला




पहाड़ों की रानी शिमला सचमुच में एक अदभुत और आकर्षक सौन्दर्य की छटा बिखेरती नज़र आती हैं। जिस और नज़र जाए वहा आप मोहिनी शक्ति के प्रभाव का अनुभव कर सकते है। मैने अपनी इस जर्नी में कई बार अपने को स्तब्ध पाया विशेषकर जाखू मंदिर में, मॉल रोड पर, घूमते हुए रास्तों पर,पहाड़ीदार मोड़ पर गाड़ियों के परिचालन पर, पार्किंग की कला, पहाड़ों पर बनी इमारतों को देखकर कई बार तो ऐसा लगा जैसे प्रकृति का कोई इंद्रधनुष उजागर हो, एक जगह तो पर्वत के ऊपर जमी बर्फ किसी बर्तन में उबलते दूध की परिकल्पना का एहसास कराती है,रात्रि के समय जब सारा शहर लाइट के साथ प्रकाशवान होता है तो वो ऐसा प्रतीत होता है जैसे आसमान ने तारों को ज़मीन की सैर पर भेज दिया है।

बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

आधुनिक संदर्भ में महाशिवरात्रि पर्व

आधुनिक संदर्भ में महाशिवरात्रि पर्व

 

महाशिवरात्रि हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक है, जिसे भगवान शिव की उपासना और साधना का दिन माना जाता है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व समय के साथ और भी बढ़ गया है, विशेषकर आज के आधुनिक संदर्भ में।

सदगुरु वासुदेव जग्गी के अनुसार महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भाँति स्थिर व निश्चल हो गए थे। यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियाँ शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए, इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।

आज के व्यस्त और तनावपूर्ण जीवन में लोग अक्सर मानसिक शांति की तलाश करते हैं। महाशिवरात्रि पर उपवास, जागरण और शिव का ध्यान करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। आधुनिक जीवन में जहां तनाव और चिंता की समस्याएं आम हो गई हैं, शिवरात्रि हमें आत्म-संयम और मानसिक संतुलन बनाए रखने का अवसर प्रदान करती है। यह दिन ध्यान और साधना के द्वारा आत्मिक शांति की ओर एक कदम और बढ़ने का है।

महाशिवरात्रि का दिन आत्मा की शुद्धि और आत्म-निर्माण का दिन होता है। आधुनिक जीवन में लोग आत्मविश्वास, आत्म-संयम, और आत्म-निर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। महाशिवरात्रि पर शिव के मंत्रों का जप और उपासना से अपने भीतर की नकारात्मकता को दूर किया जा सकता है। यह आत्म-विश्लेषण और व्यक्तिगत विकास का एक अच्छा अवसर है, जो आज के समय में बहुत आवश्यक है।

 ब्रह्मकुमारी परिवार का मानना है कि शिव के साथ रात शब्द इसलिए जुड़ा है क्योकि वो अज्ञान की अँधेरी रत में इस सृष्टि पर आते हैं। जब सारा संसार, मनुष्य मात्र अज्ञान रात्रि में, अर्थात माया के वश हो जाता है, जब सभी आत्माएं 5 विकारो के प्रभाव से पतित हो जाती हैं, जब पवित्रता और शान्ति का सत्य धर्म व स्वम् की आत्मिक सत्य पहचान हम भूल जाते है।  सिर्फ ऐसे समय पर, हमे जगाने, समस्त मानवता के उत्थान व सम्पूर्ण विश्व में फिर से शान्ति, पवित्रता और प्रेम का सत-धर्म स्थापित करने परमात्मा एक साधारण शरीर में प्रवेश करते हैं।

भगवान शिव को प्रकृति, जीवन और सृष्टि के रचनाकार के रूप में पूजा जाता है। महाशिवरात्रि हमें प्राकृतिक संसाधनों की सराहना करने और उनके प्रति कृतज्ञता का अहसास कराती है। यह पर्व हमें इस बात का स्मरण कराता है कि हम सभी पृथ्वी के निवासियों के रूप में एक दूसरे पर निर्भर हैं और हमें पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक रहना चाहिए।

आजकल के डिजिटल युग में, जहां प्रौद्योगिकी का प्रभाव हमारे जीवन के हर पहलू में बढ़ गया है, महाशिवरात्रि का पर्व एक माध्यम बन सकता है आध्यात्मिकता और प्रौद्योगिकी के बीच संतुलन बनाने के लिए। विभिन्न शिव मंदिरों और संस्थाओं द्वारा ऑनलाइन पूजा, वेबिनार और लाइव प्रसारण के माध्यम से लोग दूर-दूर से जुड़कर इस पवित्र दिन की महिमा का अनुभव कर सकते हैं। इसके जरिए आध्यात्मिक जागरूकता और उपासना को ग्लोबल स्तर पर फैलाया जा सकता है।

महाशिवरात्रि का पर्व योग और ध्यान के महत्व को भी उजागर करता है। शिव को योगियों के ईश्वर के रूप में पूजा जाता है। आधुनिक जीवन में जहां शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है, महाशिवरात्रि हमें इस दिशा में प्रेरित करती है। यह दिन योग, प्राणायाम और ध्यान के अभ्यास को बढ़ावा देने का है, जो जीवन की गुणवत्ता को सुधारने में सहायक हो सकते हैं।

कुल मिलाकर महाशिवरात्रि केवल एक धार्मिक त्यौहार नहीं, बल्कि एक अवसर है अपने जीवन को सकारात्मक दिशा देने का। यह हमें अपने भीतर की शक्ति, संतुलन और शांति को महसूस करने का एक तरीका प्रदान करता है। आज के समय में जब हम भौतिक और मानसिक संतुलन की ओर बढ़ रहे हैं, महाशिवरात्रि का पर्व हमें अपनी आध्यात्मिक यात्रा की ओर एक कदम और बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

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